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________________ ५७६ _जीवाभिगमसूत्रे प्रश्नः, भगवानाह – 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा' सर्वस्तोकाः 'खहयरतिरिक्खजोणियणपुंसगा' खेचरतियंगयोनिकनपुसका; प्रतरासंख्येयभागवयंसंख्येयश्रेणीगतनभःप्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति । खेचरतिर्यग्योनिकनपुंसकापेक्षया 'थलयरतिरिक्खजोणियणपुंसगासंखेज्जगुणा स्थलचरतियेगूयोनिकनपुंसकाः संख्येयगुणाधिकाः वृहत्तरप्रतरासंख्येयभागवत्यसंख्येयश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति । जलयरतिरिक्खजोणियणपुंसगा संखेज्जगुणा' स्थलचरनपुंसकापेक्षया जलचरतिर्यगयोनिकनपुंसकाः संख्येयगुणाधिकाः वृहत्तमप्रतरासंख्येय भागवर्त्यसंख्येयश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् 'चउरिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया' जलचरनपुंसकापेक्षया चतुरिन्द्रियतियग्योनिकनपुंसका विशेषाधिकाः, असंख्ययोज "गोयमा ! सव्वत्थो वा खहयर तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा" हे गौतम ! सब से कम खेचर तिर्यग्योनिक नपुंसक है । क्योंकि इनका प्रमाण, प्रतर के असंख्यात भाग वर्ती जोअसंख्यात श्रेणियाँ हैं उन श्रेणियों में जो आकाश प्रदेश राशि है उसके बराबर है । इन खेचर तिर्यग्योनिक नपुंसकों की अपेक्षा जो “थलयर तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा संखेज्ज गुणा" स्थलचर तिर्यग्योनिक नपुंसक हैं वे संख्यात गुणें अधिक हैं। क्योंकि इनका प्रमाण बृहत्तर जो प्रतर है-उस प्रतर के असंख्यातवे भागवर्ती जो असंख्यात श्रेणियां हैं उन श्रेणियों में जो आकाश प्रदेश राशि है उसके बराबर है । स्थलचर नपुंसकों की अपेक्षा "जलयर तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा संखेज्ज गुणा" जो जलचर तिर्यग्योनिक नपुंसक हैं वे संख्यात गुणे अधिक हैं। क्योंकि इनका प्रमाण बृहत्तमजो प्रतर है उस प्रतर के असंख्यातवे भागवर्ती जो असंख्यात श्रेणियां हैं उन श्रेणियों की आकाश प्रदेश राशि के बरोबर है । "चउरिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा वि सेसाहिया" जलचर नपुंसकों की अपेक्षा चौइन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक विशेषाधिक हैं। क्योंकि इनका प्रमाण असंख्यात योजन कोटा कोटि प्रमाण आकाश जोनाथी "विसेसाहिवा वा" विशेषाधि छ ! २मा प्रश्ना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन हे छ - "गोयमा ! सव्वत्थो वा खहयर तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा" गौतम ! सौथी ઓછા ખેચર તિર્યનિક નપું સકો છે, કેમકે–તેનું પ્રમાણ પ્રતરના અસંખ્યાત ભાગવતી જે અસં ખ્યાત શ્રેણિયે છે, તે શ્રેણિયમાં જે આકાશપ્રદેશ રાશિ છે, તેની બરોબર છે. આ ખેચરતિયંગેનિક नपुंसी ४२i "थलचर तिरिक्खजोणिय णपुंसगा संखेज्जगुणा' स्थसय२तिय यानि नसो છે, તેઓ સંખ્યાતગણી વધારે હોય છે. કેમકે –તેનું પ્રમાણ જે બૃહત્તર પ્રતર છે, તે પ્રતરના અસંખ્યાત ભાગવતી જે અસંખ્યાત શ્રેણિય છે, તે શ્રેણિયોમાં જે આકાશ પ્રદેશ રાશી છે, तनी सरासर छे. २५७३२ नपुस ४२i "जलचरतिरिक्ख जोणियणपुंसगा संखेज्जगुणा" २ सय तिर्थयानि नपुंस। छ, तसा से ज्यात वधारे छ. उभ -तनु પ્રમાણ જે બૃહત્તર પ્રતર છે, તે પ્રતરના અસંખ્યાતમા ભાગવતી જે અસંખ્યાત શ્રેણિયે છે, त श्रेणियोना ४१ प्रदेश राशीनी परामर छे. “चरिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" AAR नस। ४२॥ या२४द्रियामा तिय योनि: नसी विशेषाधि9. જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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