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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ नपुंसकानां सिथितिनिरूपणम् ५५३ जधन्येनैकं समयम् उक्कोसेणं देसूणा पुच्चकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः उभयत्र भावना प्राग्वत् ‘एवं कम्मभूमिगभरहेरवयपुवविदेह अवरविदेहेसु वि भाणियव्वं' एवं सामान्यतो मनुष्य नपुंसकवदेव भरतैरवतपूर्वापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकेष्वपि क्षेत्राश्रयणेन जधन्यतोऽन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेण पूर्वकोटिपृथकत्वं धर्मरचणं प्रतीत्य तु जधन्येन एक समयम् उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटि परिमिता कायस्थिति रिति ॥ ___ 'अकम्मभूमिग मणुस्स नपुंसएणं भंते' अकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकः खलु भदन्त ? अकम्मभूमिग मणुस्सणपुंसएत्तिकालओ केवच्चिरं होई' अकर्म भूमिक मनुष्य नपुंसक इति कालतः कियच्चिरं भवतीति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! जम्मणं पडुच्च तथा-चारित्र धर्म की अपेक्षा लेकर मनुष्य नपुंसक की कायस्थिति का प्रमाण जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से कुछ कम पूर्व कोटि का है दोनों स्थान भावना पूर्ववत् समझ लेनी चाहिये । “एवं कम्मभूमिगभरहेरवयपुव्वविदेहअवरविदेहेसु विभाणियवं" सामान्य मनुष्य नपुंसक की जैसी ही कर्मभूमि के कर्मभूमि के भरत क्षेत्र, ऐरवत क्षेत्र, पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह के-जो मनुष्य नपुंसक हैं-उनकी भी कायस्थिति है । अर्थात् इन सब कर्म भूमिगत मनुष्य नपुंसकों की कायस्थिति क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व की है । तथा-चारित्र धर्म की अपेक्षा से जघन्य एक समय की है और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि की है । अकम्मभूमिग मणुस्स णपुंसए णं भंते ! अकम्मभूमिग मणुस्स णपुंसएत्ति काल ओ केवच्चिरं होइ" हे भदन्त ! अकर्म भूमिक मनुष्य नपुंसक लगातार अकर्मभूमिक नपुंसक कितने काल तक होता है ?–अर्थात् अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की कायस्थिति कितने काल की है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं छ. भन्ने स्थानानी भावना-समय पहे॥ ४ह्या प्रमाणानी समय सवी. "एवं कम्मभूमिग भरहेरवयपुब्वविदेह अवरविदेहेसु वि भाणियव्वं" सामान्य नसनी भर भभूमिना એટલે કે ભરતક્ષેત્ર, ઐરવતક્ષેત્ર પૂર્વ વિદેહ અને પશ્ચિમવિદેહના જે મનુષ્ય નપુંસક છે, તેઓની પણ કાયસ્થિતિ પણ સમજવી. અર્થાત્ આ ઉપર કહેલ તમામ કર્મભૂમિમાં રહેવાવાળા મનુષ્ય નપુંસકોની કાયસ્થિતિ ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્ત છે, અને ઉત્કૃષ્ટ થી પૂર્વકેટિપૃથકૃત્વની છે. તથા ચારિત્રધર્મની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક સમયની અને ઉત્કૃટથી દેશનપૂર્વ કેટિની છે. "अकम्मभूमिग मणुस्स णपुंसए णं भंते ! अकम्मभूमिग मणुस्स णपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होई" मापन भभूमिना मनुष्य नपुंस: a1ns मममूभिना नसाथी કેટલાકાળ સુધી રહે છે? અર્થાત્ અકર્મભૂમિક મનુષ્ય નપુંસકની કાયસ્થિતિ કેટલા કાળની डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम स्वाभान ४ छ -'गोयमा ! जम्मण पडुच्च ७० જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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