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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ नपुंसकानां सिथितिनिरूपणम् ५४१ चरतिर्यग चतुष्पद स्थलचरोरःपरिसर्प भुजपरिसर्प खेचरतिर्यग्योनिकनपुंसकानां सर्वेषाम् 'जहन्नेणं अंतो मुहत्तं'जधन्येनान्तर्मुहूर्त स्थितिर्भवति 'उक्कोसेणं पुव्वकोडी' उत्कर्षेण पूर्वकोटिः स्थितिर्भवति ॥ तिर्यग्यो निकानां यथाक्रमं स्थितिं प्रदर्य मनुष्यस्य स्थिति दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह 'मणुस्स णपुंसगस्स णं भंते' मनुष्यनपुंसकस्य खलु भदन्त! 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'खेत्तं पडुच्च' क्षेत्रं प्रतीत्य आश्रित्य 'जहन्नेणं अंतो मुहुतं' जधन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पुव्वकोडी' उत्कषण पूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिर्भवतीति । सामान्यतो मनुष्यनपुंसकस्यापि स्थिति र्जधन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतः पूर्वकोटिप्रमाणा भवति, क्षेत्रं प्रतीत्येति कथितं तत्कर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकमपेक्ष्य कथितम् । 'धम्मचरणं' पडुच्च धर्मचरणं प्रतीत्य बाह्यवेषपरिकरप्रयुक्तनपुंसककी और खेचर तिर्यग्योनिक नपुंसक की जधन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टस्थिति एक पूर्वकोटि की है. अब सूत्रकार मनुष्य नपुंसक की स्थिति प्रकट करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है-"मणुस्स णपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भदन्त ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितने काल की होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा । खेतं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी" हे गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा लेकर मनुष्य नपुंसक की जधन्यस्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और “उक्कोसेणं" उत्कृष्टस्थिति १ एक पूर्व कोटिको है। सामान्य से यही स्थिति मनुष्य नपुंसक की है। यहां जो क्षेत्र की अपेक्षा लेकर मनुष्य नपुंसक की स्थिति कही गई है वह कर्म भूमिक मनुष्य नपुंसक की कही गई है-तथा-"धम्मचरण पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी" चारित्र धर्म की अपेक्षा लेकर कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की जधन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की નિ નપુંસકની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતમુહૂર્તની છે. અને ઉત્કષ્ટસ્થિતિ એક પૂર્વકેટિની છે હવે સૂત્રકા૨ મનુષ્ય નપુંસકોની સ્થિતિ પ્રગટ કરતા કહે છે–તેમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુને सेवा प्रश्न पूछे छे 3-"मणुस्स णपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' 3 MLવન્ મનુષ્ય નપુંસકની સ્થિતિ કેટલાકળની હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુતમસ્વામી ने ४३ छेउ-खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी' 3 गौतम! क्षेत्रनी अपेक्षाथी मनुष्य नपुंसी अन्य स्थिति मे मत इतनी छ, भने 'उक्कोसेण' स्थिति ૧ એક પૂર્વકેટિની છે. સામાન્યપણાથી આજ સ્થિતિ મનુષ્ય નપુંસકની છે. અહિયાં જે ક્ષેત્રની અપેક્ષા લઈને મનુષ્ય નપુંસકોની સ્થિતિ કહેવામાં આવી છે, તે કર્મભૂમિવાળા મનુષ્ય नसानी छ. तथा “धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी" ચારિત્ર ધર્મની અપેક્ષાથી કર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુંસકોની જઘન્યસ્થિતિ એક અંતમુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ દેશના એક પૂર્વકેટિની છે. અહિયાં આઠ વર્ષમાં સંયમ પ્રાપ્ત કર્યા પછી तासुधी सयम पाग मे शिाना 2. "कम्मभूमिग भरहेरवय पुव्वविदेहावरविदेह णपुंसगस्स वि तहेव" लारत भने भैरवतक्षेत्र ३५ भभूमिना...... જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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