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________________ ५३८ जीवाभिगमसूत्रे सप्ततमतमा पृथिवीनारकनपुंसकस्य जघन्येन द्वाविंशतिः सांगरोपमाणि स्थितिरुत्कर्षतस्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिर्भवतीति ७, 'तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते' तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य खलु भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पण्णता ?' कियत्कं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी' सामान्यतस्तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य स्थिति धन्येन अन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतः पूर्वकोटिः, 'एगिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगस्स' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकस्य 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालंस्थितिः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, उत्तरमाह -'जहन्नेण अंतोमुहत्तं' उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई' सामान्यतः एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य जधन्येनान्तमुहूर्तमुत्कर्षतो द्वाविंशति वर्ष सहस्राणि 'पुढवीकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते' पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसकस्य खलु भदन्त! 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' कियन्तं कालं नरक की स्थिति जधन्य से २२, बाईस सागरोपम की है और उत्कृष्ट से ३३, तैंतीस सागरो पम की है ७, 'तिरिक्ख जोणिय नपुंसगस्स णं भंते' हे भगवन् ! तिर्यग्योनिक नपुंसककी 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्यकोडी' सामान्य से तिर्यग्यो निक नपुंसक की स्थिति जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटि की है, 'एगिंदीयतिरिक्खजोणिय पुंसगस्स णं' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल की है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई सामान्य से एकेन्द्रियतिर्यग् नपुंसक की स्थिति जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से २२, बाईस हजार वर्ष की है 'पुढवी काइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' हे भगवन् पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसक की स्थिति कितने काल की कही है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उकोसेणं वावीसं वाससहस्साई' विशेष चिन्ता में पृथिवी સ્થિતિ જઘન્યથી ૨૨ બાવીસ સાગરોપમની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની છે. ७ 'तिरिक्खजोणिय नपुंसगस्स ण भंते !" भगवन् तिय योनि नसनी 'केवइयं कालं ठिई पण्ण ता" डेटा नी स्थिति ही छे. उत्तरमा प्रभु ४ छ ----"गोयमा !" ॐ गौतम ! "जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी" समान्य पाथी (तय-योनि નપુંસકની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્તની છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એક પૂર્વ કેટિની છે. "एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगस्स णं" मेद्रिय वातिय योनि नसनी स्थिति टमा आनी वामां मावी छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीने छ -'जहण्णेणं अंतो मुहत्त, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई" सामान्य पाथी मेद्रियाणा तिय योनि નપુસકેની સ્થિતિ જઘન્યથી અંતમુહૂર્તની અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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