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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५२९ पंचप्रकारका स्तिर्यग्योनिकनपुंसका भवन्तीति भावः ॥ तत्र 'से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणियणपुंगा' अथ के ते एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसका इति प्रश्नः, उत्तरयति -- 'एगिंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा 'पंचविहा पन्नता' एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः पंचविधाः पंचप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता इति । तानेव पंचभेदान् दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा ' ' पुढवीकाइए गिंदियतिरिक्ख जोणियणपुंसगा' पृथिवीकायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, तथा 'आउक्काइयए गिंदियतिरिवखजोणियणपुंसगा' अकायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, ‘तेउक्काइयएगिंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगा' तेजस्कायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः “वाउक्काइयए गिंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा' ग्योनिकनपुंसकाः ‘वणस्सइकाइय एगिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' वनस्पतिकायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, तथा च पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिभेदात् एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसका: पंचप्रकारका भवन्ति इति । से तं एगिंदियतिरिक्खजोणियण पुसगा' ते एते पृथिवीकायिकादयः एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः भेदसहिता निरूपिता इति ॥ ' से किं एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसक के विषय में प्रश्न करते हैं " से किं एगिंदियति रिक्खजोणिय वायुकायिकैकेन्द्रियतिर्य " पुंसगा' हे भदन्त ! एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं – “ए गिंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा पंचविहा पण्णत्ता" "गौतम ! एकेन्द्रितिर्यग्योनिक नपुंसक पाँच प्रकार के होते हैं- “ तं जहा” जैसे – “पुंढविका इयए गिंदियति रिक्खजोणियण पुंसका" पृथिवीकायिकएकेन्द्रिय तिर्यग्योनिनिकपुंसक “आउ०वाउ ० वणस्सइकाइयए गिंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा" आकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक, तैजस्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसक, वायुकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक और वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसक ये पांचस्थावरकायिकनपुंसक हैं, " से तं एगिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा” इस प्रकार से यह एकेन्द्रिय तिर्यજ્યાનિક નપુંસકે આમાં જે એક ઇન્દ્રિય વાળા તિયગ્યેાનિક નપુંસક છે. તેના સંબ ંધમાં गौतम स्वाभी महावीर अलुने पूछे छे है- "से किं तं एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" € ભગવન્ ! ये न्द्रिय वाणा तिर्यग्योनि नपुंसो छे. ते डेटा अभरना होय छे ? मा प्रश्नना उत्तरभां प्रभु गौतम स्वामीने हे छे! -- "एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा पंचविहा पण्णत्ता" हे गौतम! मे द्रिय वाजा तिर्यग्योनिङ नपुंसो पांच अभरना होय छे. "तं जहा ते पांय प्राश प्रमाणे छे. - "पुढवीकाइयएगिं दियतिरिक्खजोणिय - णपुंसगा" पृथ्वी अयि थे इन्द्रिय वाणा तिर्यग्योनिः नयु सः "आउ० तेउ वाउ० वणस्सइ काइयगिदियतिरिक्खजोनियणपुंसगा” अथायि मेन्द्रिय तिर्यग्योनि नपुस, तैસકાયિક એકેન્દ્રિય તિર્યંગ્યાનિક નપુ સક, વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક નપુ ંસક અને વનસ્પતિ કાયિક એકેન્દ્રિય તિય ગ્યેાનિક નપુ સક. આ પાંચ સ્થાવર કાયિક નપુંસક છે. ને एगिदियतिरिकखजोणिय णपुंसगा” म अभाऐ मा मेन्द्रिय तिर्यग्योनि नपुं सानु निश्या छे तं ६७ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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