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________________ ५१८ ___ जीवाभिगमसूत्रे रिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' अनुत्तरोपपातिकदेवपुरुषापेक्षया उपरितनौवेयकप्रस्तटदेवपुरुषाः संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । 'मज्झिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' उपरितनप्रैवेयकदेवपुरुषेभ्यो मध्यमवेयकदेवपुरुषाः संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । एवम्-‘हेद्विमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' मध्यमग्रैवेयकदेवपुरुषाक्षेया अधस्तनप्रैवेयकदेवपुरुषाः संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । 'अच्चुयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा' अधस्तनौवेयकदेवपुरुषापेक्षया अच्युतकल्पे देवपुरुषाः संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । एवं कियत्पर्यन्तं संख्यातगुणत्वम् ? तत्राह 'जाव' इत्यादि, 'जाव आणयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा' इति । यावत्पदेन अच्युतकल्पदेवपुरुषतोऽग्रे पश्चानुपूर्व्या-आनतकल्पदेवपुरुषपर्यन्तं देवपुरुषाः पूर्व-पूर्वापेक्षया अग्रेऽग्रेतना देवपुरुषाः संख्यातगुणा इति ब्याख्येयम् , तथाहि-अच्युतकल्पदेवपुरुषापेक्षया आरणपल्योपम के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण वाले होते हैं। 'उवरिमगेवेजदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' अनुत्तरोपपातिक देवरुपुषों की अपेक्षा उपरित प्रैवेयक प्रस्तट के देवपुरुष संख्यातगुणे अधिक होते हैं। 'मज्झिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' उपरिकनौवेयंक देवपुरुषों की अपेक्षा मध्यमग्रैवेयक देवपुरुष संख्यात गुणे अधिक होते हैं । 'हेडिमगेविज्ज देवपुरिसा संखेज्जगुणा, अच्चुयकप्पदेवपुरिसा संज्जगुणा' जाव आणयकप्पे देवपुरिसा संखज्जगुणा' मध्यम अवेयक देवपुरुषोंकी अपेक्षा अधस्तन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुणे अधिक होते हैं, अधस्तनौवेयक देवपुरुषों की अपेक्षा अच्युत कल्पके देवपुरुष संख्यात गुणे अधिक होते हैं । यावत् आनतकल्प पर्यन्त के देवपुरुष संख्यातगुणे अधिक होते हैं ।ऐसे संख्यात गुणात्व कहां तक कहना चाहिये ? इस पर कहते हैं-'जाव' इत्यादि, 'जाव आणयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा' यहां से अर्थात् अच्युत कल्प देव पुरुषों के आगे पश्चानुपूर्वीसे आनतकल्प देवपुरुषपर्यन्त पूर्वपूर्व की अपेक्षा आगे आगे के देव पुरुष ५मना असण्यातमा माती १२ प्रशानी २५ प्रमाण वाणा डाय छे. "उवरिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा" मनुत्तरी५५ति हेक्५३॥ ४२di परितन अवेयर प्रस्तटना हेव यु३षा सध्यात धारे हाय छ, “मज्जिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा" परितन अवय हेव ५३षो२तi मध्यम अवेय व पुरुष सभ्यात ॥१॥ पधारे हाय छे. मे०४ प्रमाणे “हेहिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा' 'अच्चुयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा' मध्यम अवय हे ५३षो ४२di अधस्तन अवेय: ५ ५३५ सध्यात ગણા વધારે હોય છે. અધતન રૈવેયક દેવપુરૂષે કરતાં અચુત ક૯૫ના દેવ પુરૂષ સંખ્યાત ગણ વધારે હોય છે. આવું સંખ્યાત ગુણ પણું કયાં સુધી કહેવું જોઈએ ? આ સંબંધમાં સૂત્રકાર કહે छ -'आणयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा" अश्युत ४६५न हेव ५३षांनी या पश्चार्नु પૂર્વિથી આનત કલ્પના દેવપુરૂષ પર્યન્ત પહેલા પહેલાની અપેક્ષાથી પછી પછીના દેવ પુરૂષ સંખ્યાત ગણા વધારે હોય છે. આ પ્રમાણેની વ્યાખ્યા કહેવી જોઈએ. જેમકે–અશ્રુત કલ્પના દેવ પુરૂષ કરતાં જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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