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________________ ५१६ जीवाभिगमसूत्रे संखेज्जगुणा' अन्तरद्वीपकमनुष्यपुरुषापेक्षया देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषाः संख्येयगुणा अधिका भवन्ति तथा द्वयानां परस्परं संख्येयगुणत्वेन तुल्यता च भवति क्षेत्रस्य बहुत्वेन समानत्वात् , 'हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' तदपेक्षया हरिवर्षरम्यकवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषा द्वयेऽपि तुल्याः संख्येयगुणाः क्षेत्रस्याति बहुत्वात् , 'हेमवयएरण्णवयवासअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' हरिवर्षरम्यकवर्षमनुष्यापेक्षया, हैमवतैरण्यवतवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषाः संख्येयगुणा अधिकाः क्षेत्रस्य अल्पत्वेऽपि अल्पस्थितिकत्वेन प्राचुर्येण लभ्यमानत्वात् । तथाएतेषां द्वयानां क्षेत्रस्य समानत्वात् परस्परं तुल्यता च । क्षेत्र छोटा होता है । 'देवकुरूत्तरकुरुअकम्भभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' अन्तरद्वीपके मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा देवकुरु और उत्तर कुरु इन दोनों क्षेत्रों के मनुष्य पुरुष दोनों क्षेत्रों की समानता से परस्पर समान होते हुए संख्यात गुणे अधिक होते हैं, क्योंकि अन्तरद्वीप की अपेक्षा ये दोनों क्षेत्र बड़े हैं । 'हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखज्जगुणा' देवकुरु उत्तर कुरु के मनुष्य पुरुषोंकी अपेक्षा हरिवर्ष रम्यक वर्ष इन दोनों अकर्मभूमि के मनुष्य पुरुष परस्पर समान होते हुए संख्यातगुणे अधिक होते हैं, क्योंकि देवकुरु उत्तर कुरु क्षेत्र की अपेक्षा ये दोनों क्षेत्र अधिक विस्तृत हैं, 'हेमवय हेरण्णवयवासअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' हरिवर्ष रम्यकवर्ष क्षेत्र के मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा ये हैमवत हैरण्यवत वर्ष इन दोनों क्षेत्र के मनुष्य पुरुष परस्पर संख्यामें समान होते हुए संख्यात गुणे अधिक होते हैं, इन क्षेत्रों के छोटे होते हुए भी यहां यहां के मनुष्य पुरुष अल्पस्थिति वाले होने से छ, उभी क्षेत्र ४२०i 241 मत२६५ क्षेत्र नानु डाय छे. “देव कुरूतरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" मतद्वीपन मनुष्य पुरुषो ४२त ३ અને ઉત્તરકરુ આ બન્ને ક્ષેત્રોના મનુષ્ય પુરુષો અને ક્ષેત્રોના સમાન પણાને લઈને પરસ્પર બનને સરખા હોય છે. અને સંખ્યાત ગણા વધારે હોય છે કેમકે–અંતરદ્વીપ કરતાં આ भन्न क्षेत्री भोट डाय छे. "हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तल्ला संखेज्जगणा" १२ भने त्त२४२ना मनुष्य ५२॥ ४२तस्वष भने २भ्य वर्ष આ બેઉ અકર્મ ભૂમિના મનુષ્ય પુરુષ પરસ્પર સમાન હોય છે, અને સંખ્યાત ગણા વધારે डाय छे. उभ-हेर उत्तरशुरु क्षेत्र ४२di मे क्षेत्र पधारे विस्तार का छे. "हेमवय हेरण्णवयवास अकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसादो वि तुल्ला संखेजगुणा" विर्ष भने २भ्य वर्ष ક્ષેત્રના મનુષ્ય પુરુષ કરતાં આ હૈમવત અને હૈરણ્યવત વર્ષ આ બન્ને ક્ષેત્રના મનુષ્ય પુરુષ અને અન્ય સંખ્યામાં સરખા છે અને સંખ્યાતગણું વધારે છે. આ ક્ષેત્રો નાના હોવા છતાં પણ ત્યાંના મનુષ્ય પુરુષ અલ્પ સ્થિતિ વાળા હોવાથી મનુષ્ય પુરુષ વધારે પ્રમાણમાં મળે છે. “મા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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