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________________ ४२४ जीवाभिगमसूत्रे (महिला) भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'जम्मणं पडुच्च' तत्रैव हैमवतैरण्यवतयोः जन्मप्रतीत्य -जन्माश्रयणेन 'जहन्नेण देसूर्ण पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं' जधन्येन देशोनं पल्योपमं पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम् पल्योपमस्य असंख्येय भागात्मकदेशेन ऊनं पल्योपमं यावत् हैमवताद्यकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां तादृशमनुष्यस्त्रीरूपेणाव स्थानं भवतीति भावः। 'उक्कोसेणं पलिओवम' उत्कर्षेण संपूर्ण पल्योपमं यावदवस्थानमिति 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' संहरणं प्रतीत्य-संहरणापेक्षया तु जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् अन्तमुहूर्तायुः शेषे एव तस्याः संहरणभावात् 'उक्कोसेणं पलिओवमं देसूणाए पुच्चकोडीए अब्भहियं' उत्कर्षेण देशोनया पूर्वकोट्याऽभ्यधिकमेकं पल्योपमं यावदवस्थानं भवति तच्चावस्थानमानं देशोनपूर्वकोट्यायुष्कायास्तत्र संहरणे तत्रैव च मृत्वोत्पन्नाया ज्ञातव्यम् । 'हरिवास रम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भंते ! हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सि स्थिति कालो कियच्चिरं भवई' हरिवर्षरम्यकवर्षाकर्मभूमिकम नुष्यस्त्रीणां भदन्त ! हरिवर्षरस्त्रियों के रूप में रहने का काल कितना है ! उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं''हे गौतम! इनका अवस्थान काल जघन्य से तो देशोन पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन एक पल्योपम का है और 'उक्कोसेणं पलिओवम' उत्कृष्ट से पूरा एक पल्योपम का है अधिक से अधिक इतने समय तक हैमवत और ऐरण्यवत की मनुष्य स्त्री मनुष्य स्त्री रूप से अवस्थित रह सकती हैं । "संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्को सेण पलिओवमं देसूणाए पुच्चकोडीए अब्भहियं” संहरण की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु के शेष रहते उसका संहरण हो जाने के कारण जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि से अधिक एक पल्योपम तक रहती है यह प्रमाण देशोन पूर्वकोटि आयु की स्त्री का संहवणहोने पर वह वहीं मरकर वहीं उत्पन्न होने वाली स्त्री की अपेक्षा से समझना चाहिये । “हरिवास रम्मग वास अकम्म भूमिगमणुस्सित्थीणं भंते?" हे भदन्त ! जो हरिवर्ष और रम्यक वर्ष की अकर्म स्वामीन ४ छ - "गोयमा ! जम्मणं पहुच्च जहण्णेणं देसूर्ण पालओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं" गीतम! तेयानो अवस्था धन्यथी शान पक्ष्या५मना मसभ्यातमा लागथीडीन मे पक्ष्योपभनी छ भने "उक्कोसेणं पलिओवमं थी पूरी એક પાપમાને છે. વધારેમાં વધારે આટલાકાળ સુધી હૈમવત અને ઐરણ્યવતની મનુષ્ય स्त्री मनुष्य स्त्री ५guथी २डी शडे छ. "संहरणं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियं" स २६नी अपेक्षाथी मतभुत प्रमाणन આયુષ્ય બાકી રહે ત્યારે તેનું સંહરણ થઈ જવાના કારણથી જઘન્યથી એક અંતમું છું સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશના પૂર્વ કેટિ થી વધારે પલ્યોપમ સુધી રહે છે. આ પ્રમાણ દેશન પૂર્વ કેટિની આયુષ્યવાળી સ્ત્રીનું સંહરણ થાય ત્યારે તે ત્યાં જ મરીને ત્યાં જ ઉત્પન્ન થવા વાળી स्त्रीनी अपेक्षाथी सभा न. "हरिवासरम्मगवास अकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं मंते ! જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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