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________________ ४२० जीवाभिगमसूत्र नं भवति भावना तु कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रिया इव कर्तव्येति । 'पुन्वविदेहअवरविदेहित्यीणं खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुत्त" पूर्वविदेहापरविदेहस्त्रीणां क्षेत्र प्रतीत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण पूर्वकोटिपृथक्त्वमवस्थानं भवतीति 'जम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुचकोडी' धर्मचरणं प्रतीत्य आश्रित्य जघन्येनैकं समयमुत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः, एतावत्कालपर्यन्तमवस्थानं स्त्रीरूपेण भवतीति ॥ सामान्यतो विशेषतश्च कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीवक्तव्यतामभिधाय साम्प्रतमकर्मभूमिकमनुष्य स्त्रीवक्तव्यतां चिकीर्षुः प्रथमतः समान्येन तावदाह-'अकम्मभूमिग' इत्यादि, 'अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते' अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्री खलु भदन्त । 'अकम्मभूमिग मणुस्सिस्थिति कालो केवच्चिरं होई' अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीइत्येवं रूपेण कालतः कियच्चिरं भवतीति प्रश्नः, भगवानाहउत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि का है इसका कारण कर्मभूमिज मनुष्य स्त्री के जैसा समझ लेना चाहिये "पुव्वविदेहअवरविदेहित्थीणं खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहुत्तं" पूर्वविदेह और अपर विदेह की मनुष्य स्त्रियों का क्षेत्र की अपेक्षा करके जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक अवस्थानकाल होता है और उत्कृष्ट से पूर्व कोटि पृथक्त्व तक अवस्थान रहता है "धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी" चारित्र धर्म की अपेक्षा करके जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटि तक अवस्थान रहता है, इस प्रकार सामान्य और विशेष से कर्म भूमिक मनुष्य स्त्री के सम्बन्ध में वक्तव्यता का कथन करके अब सूत्रकार सामान्य रूप से अकम भूमिक मनुष्य स्त्री की वक्तव्यता का कथन करते हैं- इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है- “अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते!" अकम्मभूमिगमणुस्सिस्थिति कालओ केवच्चिरं होइ “हे भदन्त ! काल की अपेक्षा से अकर्म रिनु छे. तनुं ॥२९५ ४भ भूमिगत मनुष्यस्थीना ४थन प्रभायेनु सम से. "पुटवविदेह अवरविदेहित्थीणं खेत पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उनकोसेणं पुव्वकोडी पुहुत्त', पूर्व વિદેહ અને અપરવિદેહના સ્ત્રિનું અવસ્થાન ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્ત सुधीनु हाय छे. मन टथी पूटिश्य सुधीन डाय छे. "धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी" यारित्र धर्मनी अपेक्षाथी अन्यथा એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશોન પૂર્વકેટિ સુધીનું અવસ્થાન રહે છે. આ પ્રમાણે સામાન્ય અને વિશેષ પ્રકારથી કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રીના સંબંધમાં કથન કરીને હવે સૂત્રકાર સામાન્ય પણાથી અકર્મભૂમિક મનુષ્યના સંબંધમાં કથન કરે छ.-मामा गौतम स्वामी प्रसुन मे पूछयु छ ,-"अकम्मभूमिग मणुस्सित्थीणं भंते ! अकम्मभूमिगमणुस्सिस्थिति कालओ केबच्चिरं होइ'' भगवन् ! अनी अपेक्षाथी જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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