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________________ जीवाभिगमसूत्रे पशमवैचित्र्यत एकस्यैव समयस्य संभवात् ततः मरणेन प्रतिपातसंभवात्, उत्कर्षतो देशोना पूर्वकोटिः, समग्रचारित्रकालस्योत्कर्षतोऽपि एतावन्मात्रप्रमाणत्वात् । भरतैरवत्यः स्त्रियोऽपि एवमेव, भरतैरवतक्षेत्रस्त्रियामपि अवस्थानमानमेवमेव ज्ञातव्यम्, किन्तु सामान्यकर्म भूमिकमनुष्यस्यपेक्षया एतासां यद्वैलक्षण्यं तत् ‘णवरं' इत्यादिना प्रदर्शयति-'णवरं खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अतोमुहुत्तं' नवरं विशेषस्त्वयम् , यत् क्षेत्रं प्रतीत्य भरतादि क्षेत्रमेवाश्रित्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमवस्थानं स्त्रीरूपेण, 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसणं पुवकीडी अब्भ चारित्रधर्म लेकर जघन्य से एक समय का स्त्री रूप से अवस्थान कहा है क्योंकि सर्वविरति परिणाम का तदावरण कर्म के क्षयोपशम की विचित्रता से एक समयमात्र काल का ही संभव है, तदन्तर मरण हो जाने से सर्वविरति परिणाम का प्रतिपात हो जाता है । और उत्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटी कहा है उसका कारण यह है कि संपूर्ण चारित्र काल का उत्कृष्ट प्रमाण इतनाही होता है, आठ वर्ष रूप देश से न्यून होने से देशोन कहा हैं, चरम श्वासोच्छ्वास पर्यन्त चारित्र पालने के कारण पूर्वकोटि कहा है। "भरहेरवया वि" सामान्य मनुष्यस्त्री का जो अवस्थान काल प्रमाण कहा गया है वैसे ही अवस्थान काल का प्रमाण भरत और ऐरवत स्थित कर्मभूमिक स्त्री का भी जानना चाहिये, परन्तु सामान्य मनुष्य स्त्री के अवस्थान काल की अपेक्षा इसके अवस्थान काल में जो अन्तर है वह “णवरं' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है, नवरं विशेष यह है कि "खेत्तं पडच्च" भरतादि क्षेत्र की अपेक्षा इसके अवस्थानकाल का प्रमाण 'जहन्नेण अंतोमुहुत्तं' जघन्य से तो एक अन्तर्मुहर्त का है और 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं देसूणं पुनकोडीअब्भहियाई' उत्कृष्ट से इसके अवस्थान काल का ચારિત્ર ધર્મને લઈને જઘન્યથી એક સમયનું સ્ત્રી પણાથી અવસ્થાન-સ્ત્રીપણામાં રહેવાનું કહ્યું છે. કેમકે–સર્વવિરતિ પરિણામનું તદાવરણ કર્મના ક્ષપશમની વિચિત્રતા થી એક સમય માત્ર કાળજ સંભવે છે. તે પછી મરણ થઈ જવાથી સર્વવિરતિ પરિણામન આગમન થઈ જ જાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશોનપૂર્વકેટિ કહેલ છે. તેનું કારણ એ છે કે-સંપૂર્ણ ચારિત્ર કાલનું ઉત્કૃષ્ટ પ્રમાણ એટલું જ હોય છે. આઠ વર્ષની અવસ્થા માં ચારિત્ર લેવામાં આવે છે. તેથી તે આઠવર્ષ રૂપ દેશથી ન્યૂન હોવાથી દેશેન કહેલ छ. "भरहेरवयावि" सामान्य मनुष्य सीना ने अवस्थान 0 ४ छ. मेरी प्रमाणेना અવસ્થાનકાળનું પ્રમાણ ભરત અને ઐરવતમાં રહેલ કર્મભૂમિની સ્ત્રીનું પણ સમજવું. પરંત સામાન્ય મનુષ્ય સ્ત્રીના અવસ્થાન કાળની અપેક્ષાથી આના અવસ્થાન કાળમાં જે અંતર छे, ते "णवरं" मा सूत्रपाद्वारा प्रगट ४२वामा मावस छ. "नवरं" विशेष छ है"खेत्तं पडुच्च" मरता क्षेत्रनी अपेक्षाथी माना भवस्थानानु प्रभाए। "जहणणं अंतोमुहुत्त धन्यथी तो मे अंतर्भूतनी छ. मन "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओव જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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