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जीवाभिगमसूत्रे
समुद्गपक्षिणां स्वरूपं दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह से किं तं' इत्यादि, 'से किं तं समुग्ग पक्खी' अथ के ते समुद्गपक्षिण इति प्रश्नः, उत्तरयति – 'समुग्गपक्खी एगागारा पन्नत्ता जहा पण्णवणाए' समुद्गपक्षिणः एकाकारा - एक प्रकारका एव प्रज्ञप्ताः - कथिता यथा प्रज्ञापनायाम् । तथा च प्रज्ञापनाप्रकरणम् -' से किं तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पन्नता । ते णं नत्थि इहं बाहिरएस दीवसमुद्देसु भवंति से तं समुग्गपक्खी' अथ के ते समुद्गपक्षिण ? समुद्गपक्षिण एकाकाराः प्रज्ञप्ताः, ते खलु न सन्ति इह । बाह्येषु द्वीपसमुद्रेषु ते भवन्ति ते एते समुद्गपक्षिणो निरूपिता इति ॥
विततपक्षिणो निरूपयितुमतिदिशति - ' एवं ' इत्यादि, 'एवं विततपक्खी जाव' एवं यथा समुद्गकपक्षिणः प्रज्ञापनाप्रकरणान्निरूपिता स्तथैव विततपक्षिणोऽपि निरूपयितव्याः प्रज्ञापनासूत्रपाठस्तु इत्थं तथाहि - 'से किं तं विततपक्खी ? विततपक्खी एगागारा पन्नता
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समुद्गकपक्षी के सम्बन्ध में कथन इस प्रकार से है ? 'से किं तं समुग्गपक्खी' हे भदन्त ! समुद्गकपक्षी कितने प्रकार के हैं उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! 'समुग्गपक्खी-एगागारा पण्णत्ता जहा पण्णवणाए' समुद्गक पक्षी प्रज्ञापना के कथनानुसार एक ही प्रकार के कहे गये हैं- प्रज्ञापना का वह प्रकरण इस प्रकार से है - ' से किं तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी गागारा पन्नत्ता, ते णं नत्थि इहं बाहिरएसु दीवसमुद्देसु भवंति' ये समुद्गक पक्षी एक ही प्रकार के होते हैं । और ये यहां मनुष्य क्षेत्र में नहीं होते हैं- किन्तु बाहर के द्वीपसमुद्रों में होते हैं । इस प्रकार से समुद्गक पक्षिका कथन कर के अब सूत्रकार वितत पक्षियों का निरूपण करते हैं - ' एवं विततपक्खी जाव' जिस प्रकार से प्रज्ञापना का प्रकरण को लेकर समुद्गक पक्षिका निरूपण किया गया है-उसो प्रकार से विततपक्षियों का भी निरू पण करलेना चाहिये० प्रज्ञापना सूत्र का पाठ इस प्रकार से हैं- " से किं तं विततपक्खी ? હવે સમુદ્ગક પક્ષીના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવે છે. આ સબધમાં ગૌતમस्वामी अलुने पूछे छे हैं- से किं तं समुग्गपकुखी” हे लजवन समुहगड पक्षी डेटसा अक्षरना ह्या छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामी ने आहे छे ! हे गौतम! "समुग्गपकूखी गागारा पण्णत्ता' जहा पण्णवणाए" समुद्दगपक्षी प्रज्ञापना सूत्रमां ह्या प्रमाणे थोऊन अारना उडेला छे. अज्ञायनासूत्रनु ते असा प्रमाणे छे " से किं तं समुग्गपक्खी समुग्गपक्खी पगागारा पण्णत्ता" ते णं णत्थि इहं बाहिरएसु दीवसमुद्देसु भवंति " આ સમુદ્ગક પક્ષિયે એકજ પ્રકારના હોય છે, અને તે અહિયાં મનુષ્યક્ષેત્રમાં હોતા નથી, પરંતુ બહારના દ્વીપસમુદ્રોમાં હોય છે. આરીતે સમુદ્ગપક્ષિનું' કથન કરીને હવે સૂત્રકાર वितत पक्षियोनु नि३५ १२ छे. एवं विततपक्खि जाव" ने प्रमाणे प्रज्ञापना सूत्रना પ્રકરણમાં સમુદ્ગ પક્ષીનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણે વિતત પક્ષિયાનુ निय पशु समल से अज्ञापनासूत्र ते पाहाप्रमाणे छे.- " से किं तं वितत
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જીવાભિગમસૂત્ર