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________________ ૨૬૮ जीवाभिगमसूत्रे विततपक्षिणः, विततौ-नित्यमसंकुचितौ पक्षौ विततपक्षौ तौ विद्यते येषां ते विततपक्षिणः सर्वदा प्रसारितपक्षवन्तः इत्यर्थ इति । तत्र सर्वप्रथमं चर्मपक्षिणो निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह'से कि तं' इत्यादि, 'से कि तं चम्मपक्खी' अथ के ते चर्मपक्षिणः इति प्रश्नः, उत्तरयति-'चम्मपक्खी' अणेगविहा पन्नत्ता' चर्मपक्षिणोऽनेकविधाः प्रज्ञप्ताः-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा- 'वग्गुली जाव जे यावन्ने तहप्पगारा' वल्गुलिनो यावत् ये चान्ये तथा प्रकारास्ते सर्वेऽपि चर्मपक्षिरूपतया प्रतिपत्तव्याः, अत्र यावत्पदेनात्रापि प्रज्ञापनाप्रकरणं पठितव्यम् , । एतेषां स्वरूपं लोकत एवावगन्तब्यमिति | 'से तं चम्मपक्खी' ते एते उपरि दर्शिता वल्गुलिप्रभृति पक्षिणश्चर्मपक्षिरूपतया ज्ञातव्या इति ॥ ___अथ लोमपक्षिणो निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह-'से किं तं लोमपक्खी' अथ के ते लोमपक्षिण इति प्रश्नः, उत्तरयति- 'लोमपक्खी अणेगविहा पन्नत्ता' लोमपक्षिणोऽनेकपक्खी' तथा जिनके दोनों पंख हमेशा फैले हुए रहते हैं-कभी संकुचित नहीं होते हैं वे विततपक्षी हैं इस प्रकार खेचर पक्षियों के सम्बन्ध में सामान्य रूप से जानकारी प्राप्त कर अब गौतम इसी विषय में विशेष रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रभु से ऐसा पूछते हैं-"से कि तं 'चम्मपक्खी' हे भदन्त ! वे चर्मपक्षी कितने प्रकार के होते हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं'चम्मपक्खी अणेगविहा पन्नत्ता" हे गौतम ! चर्मपक्षी अनेक प्रकार के कहे गये हैं "तं जहा' जैसे'वग्गुलीजाव जे यावन्ने तहप्पगारा' वल्गु-यावत् और भी इसी प्रकार के अनेक जीव हो, यहां यावत्पद से 'जलोया अडिल्ला' भारुडपक्खी जीवजीवा समुदायसा कण्णत्तिया पक्खि विरालिया" इन प्रज्ञापना पठित खेचर जीवों का संग्रह हुआ है। इन सब का स्वरूप लोक से ही जानने के योग्य हैं 'से त्तं चम्मपक्खो " इस प्रकार का यह सब कथन चर्मपक्षियों के सम्बन्ध में कहा है। 'से कि तं लोमपक्खी ' हे भदन्त ! लोमपक्षी कितने प्रकार हैं ? उत्तर में प्रभु ફેલાવેલી રહે છે તેઓ વિતતપક્ષી કહેવાય છે. આ રીતે ખેચર-આકાશમાં ફરનારા પક્ષિયેના સંબંધમાં સામાન્ય પણાથી સમજણમેળવીને હવે ગૌતમ સ્વામી આ સંબંધમાં વિશેષ ५॥था समन भेजा भाटे प्रभुने मे पूछे छे -"से किं तं चम्मपक्खी सावन् ते यभपक्षीय डेटा जाना हाय छ १ मा प्रश्न उत्तरभां प्रभु ४ छ -"चम्म पक्खी अणेगविहा पण्णत्ता" है गौतम ! यम पक्षी अने ४२॥ ४॥ छ. "तं जहा' ते मा प्रभारी छे. “वग्गूलो जाव जे यावन्ने तहप्पग्गारा" परशुली यावत् भी पy भाना २१॥ अने वा हाय ते मया समसामडियां याव५४थी “जलोया,अडिल्ला, भारुडपक्खी, जीवजीवा, समुहवायसा कण्णतिया पक्खि विरालिया" २ प्रज्ञापन सूत्रमा કહેલા પાઠ પ્રમાણે ખેચર–આકાશગામી છ સંગ્રહ થયેલ છે. આ તમામ પક્ષીનું २१३५ व्यवहारथी सम से. “से तं चम्मपक्खी" मा प्रमाणे नुमा तमाम थन ચર્મપક્ષીઓના સંબંધમાં કહ્યું છે. હવે લેમપક્ષીના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે है-"से किं तं लोमपक्खि" हे भगवन् सोमपक्षी डेटा प्रा२ना सा छ, १ मा प्रश्नना જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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