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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ स्थलचरपरिसर्पसंभूच्छिम पं. ति. जीवनिरूपणम् २५५ अणेगविहा पन्नत्ता' मुकुलिनः-सर्पविशेषा अनेकविधाः-अनेकप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः, 'तं जहा' तद्यथा-'दिव्वा गोणसा जाव सेत्तं मउलिणो' दिव्या गोणसा यावत् ते एते मुकुलिनः कथिताः, अत्रापि यावत्पदेन प्रज्ञापनाप्रकरणमुन्नेयमिति ‘से तं अही' ते एते अहयःसर्पविशेषाः कथिता इति ॥ अहेर्मेदान् निरूप्य अजगरभेदान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह-'से किं तं' इत्यादि, ‘से कि तं अयगरा' अथ केते अजगराः ? इति प्रश्नः, उत्तरयति–'अयगरा' एगागारा पन्नत्ता' अजगरा एकाकारा एकप्रकारका एवं प्रज्ञप्ताः-कथिता इति ते एते अजगरा निरूपिता इति । 'से किं तं आसालिया' अथ के ते आसालिकाः ? इति प्रश्नः, उत्तरयति'आसालिया जहा पण्णवणाए' आसालिका यथा प्रज्ञापनायां कथिता स्तथैव ज्ञातव्याः, तत्रहिकितने प्रकार के होते हैं ? "मउलिणी अणेगविहा पन्नत्ता" हे गौतम ! मुकुलो सर्प अनेक प्रकार के होते हैं। "तं जहा" जैसे-दिव्वा गोणसा जाव से तं मउलिणो" दिव्य, गोनस आदि, यहाँ यावत्पद से प्रज्ञापना का प्रकरण इस सम्बन्ध में गृहीत हुआ है। “से तं अही" इस प्रकार से यहाँ तक का कथन सब "अही" के सम्बन्ध में कहा गया जानना चाहिये । अब सूत्रकार अजगर के भेदों को प्रकट करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पछा है-"से कि तं अयगरा" हे भदन्त ! अजगर कितने प्रकार के होते हैं ? "अयगरा एगागारा, पन्नत्ता" हे गौतम ! अजगर एक प्रकार के ही होते हैं । “से कि तं आसालिया" हे भदन्त ! आसालिक सर्प कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"आसालिया जहा पण्णवणाए" हे गौतम ! प्रज्ञापना प्रकरण में जैसा कहा गया हैवैसा ही यहाँ इन आसालिकों के सम्बन्ध में कह लेना चाहिये । उस प्रकरण का भाव ऐसा "से कि तं मउलिणो' उगवन् भुइसी सपा ॥२ना हाय छ ? "मउ. लिणो अणेगविहा पण्णत्ता' 3 गौतम ! मुलीस भने प्रा२ना हाय छे. "तं जहा" ते प्रमाणे छ -'दिव्वा गोणसा जाव से तं मउलिणो" हिव्य, गोनस, विगेरे माडियां યાવરૂદથી પ્રજ્ઞાપનાસ્ત્રનું આ સબંધને લગતું પ્રકરણ ગ્રહણ કરાયું છે. से तं अही" शत माटमा सुधीनुसघणु थन 'अही' नसभा हेस छ. तभ समन्यु હવે સૂત્રકાર “અજગર' ના ભેદે પ્રકટ કરે છે. આ સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને पूछे छ,-"से किं तं अयगरा' लगवन् स ट प्रा२ना डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ-"अयगरा एगागारा पण्णत्ता" गीतम! सागर ४० ४२ना डाय छे. शथी गौतम स्वामी पूछे छे है-"से किं तं आसालिया" ભગવદ્ આસાલિક સર્ષ કેટલા પ્રકારના હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે "आसालिया जहा पण्णवणाए" है गौतम ! प्रज्ञापन सूत्रमा मा विषयमा प्रमाणे કહેલ છે, એજ પ્રમાણે અહિયાં આ આસાલિકાના સંબંધમાં સમજી લેવું તે પ્રકરણ ને જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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