SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० जीवाभिगमसूत्र जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'पुला किमिया जाव समुद्दलिक्खा' पुलाकृमिका यावत् समुद्र लिक्षाः, अत्र यावत्करणात् इत्थं परिपूर्णपाठो विज्ञेयः-'पुला किमिया कुच्छिकिमिया गंडूलगा गोलोमा नेउरा सोमगला वंसीमुहा सूइमुहा, गोजलोया जलोया जलाउया संखा संखणगा घुल्ला खुल्लागुलया खंधा वराडा सोत्तिया कल्लुया कसा एगतोवत्ता दुहतो वत्ता नंदियावत्ता संबुक्का माइवाहा सिप्पि संपुडा चंदणा समुहलिक्खा' इति, तत्र 'पुलाकिमिया' पायुप्रदेशोद्भवाः कृमयः 'कुच्छिकिमिया' कुक्षौ समुत्पन्नाः लघुकृमयः ‘गंडलगा' गण्डोलकाः, तत्रैव समुत्पन्नाः किञ्चिद् बृहत्कायाः कृमयः 'गुडोला' इति प्रसिद्धाः ‘गोलोमा' गवां लोम्नि सञ्जाता गोलोमकाः । 'नेउरा' इत्यत आरभ्य समुद्रलिक्षान्ताः सर्वेऽपि द्वीन्द्रिया यथाशास्त्रं विबिच्य स्वयमेव विज्ञेयाः । 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथा प्रकाराः, उपर्युक्तद्वीन्द्रिय हैं-"तं जहा" जैसे-“पुला किमिया जाव समुहलिक्खा'' पुला कृमिका यावत् समुद्रलिक्षा । यहाँ यापत्पद से ऐसा पूरा पाठ गृहीत हुआ जानना चाहिये- “पुलाकिमिया, कुच्छिकिमिया, गण्डूलगा, गोलोमा, नेउरा, सोमगला, वंसीमुहा, सुइमुहा, गोजलोया, जलोया, जलाउया, संखा, संखणगा, धुल्ला, खुल्ला, वराडा, सोतिया, मोतिया, कल्लुया, वासा, एगतोवत्ता, दुहतोवत्ता, नंदियावत्ता, संवुक्कामाइवाहासिप्पिसंपुडाचंदणा समुद्दलिक्खा" पायु प्रदेश में गुदा प्रदेश में जो कृमि उत्पन्न होते हैं वे "पुलाकिमिय" शब्द से गृहीत हुए हैं । जो लघुकृमि उदर में उत्पन्न होते हैं वे कुच्छिकिमि” हैं । गण्डोलक उदर में ही उत्पन्न होनेवाले कुछ बडे कृमि जो-गंडोलानाम से प्रसिद्ध हैं । जो गायों के रोम में जीव उत्पन्न हो जाते हैं वे गोलोमक हैं । ये सब द्वीन्द्रियजीव हैं । “नेउर" से लेकर तथा “समुद्र लिक्षा" तक के समस्त जीव भी द्वीन्द्रिय हैं और इनका वर्णन शास्त्रानुसार जानलेना चाहिये । इसी प्रकार के जो और भी जीव हैं जो इन्हीं दो इन्द्रिय जीवों के जैसे होते हैं जैसे-मृतक है गौतम ! मेन्द्रियो पात्र भने प्रा२ना डाय छे. "तं जहा" २ मा प्रभारी छ.- “पुलाकिमिया जाव समुहलिक्खा" सामि यावत् समुद्र सिक्ष, मड़ियां यावत्प मा नाल प्रमाणे संपू 18 अ ४२॥ये। छे. तभ समन्यु. “पुलाकिमिया, कुच्छि किमिया, कण्डूलगा गोलोमा, नेउरा, सोमगला, वंसीमुहा, सुइमुहा, गोजलोया, जलोया जलउया, संखा, संखणगा, धुल्ला, खुल्ला, वराडा, सोत्तिया, गोत्तिया, मोत्तिया, कल्लुया, वासा, एगतोतत्ता, दुहतीवत्ता. नंदियावत्ता, संपुक्काभाहबाहा, सिपि संपुडा चंदणा, समुद्दलिक्खा" वायु प्रदेशमा-गुहाशमा भिया उत्पन्न थाय छ, तेने "पुला. मिकिया ४ा छे. पेटमा सधु भित्५न्न थाय छ, ते 'कुच्छिकिमिइ” उपाय छे. पेटभ पन्त था पाणा भने घाम था पा. मोरा भिने गंडोलक" नामथी ४ छे. ॥याना शममारे । उत्पन्न थाय छ, तने “गोलोमक" उपाय छ भासा मेन्द्रिय पाणी छ. "नेउर" थीएन तथा समुद्रलिक्षा' सुधान। બધા જ છે હીન્દ્રિય છે. કહેવાય છે, અને તે બધાનું વર્ણન શાસ્ત્ર પ્રમાણે સમજી લેવું જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy