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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ प्र. १ साधारणवनस्पतिकायिकजीवनिरूपणम् १६७ र्षतश्चापि अङ्गुत्वस्यासंख्येयभागप्रमाणैव भवति नाधिकेति भावः । तथा-'सरीरगा अणित्थंस्थसंठिया' शरीराणि अनित्थंस्थसंस्थितानि-बादखनस्पतिकायिकानां शरीराणि अनिथंस्थसंस्थान युक्तानि भवन्तीत्यर्थः 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साई' बादर वनस्पतिकायिकानां स्थितिः जघन्येनान्तर्मुहूर्तप्रमाणा भवति-उत्कर्षेण तु दशवर्षसहमप्रमाणा भवतीति । इयं स्थितिरपि प्रत्येकशरीरबादरवनस्पतिकायिकापेक्षयैव ज्ञातव्या, साधारणशरीरबादरवनस्पतिकायिकानां स्थितिर्जघन्योत्कृष्टाऽन्तर्मुहूर्तप्रमाणैव भवतीति तात्पर्यार्थः । 'जाव दुगइया ति आगइया' यावद्विगतिका त्र्यागतिकाः बादरवनस्पतिका यिका ज्ञातव्याः, यावत्पदेन शरीराअपेक्षा कही गई है ऐसा जानना चाहिये । बाकी साधारण शरीरवनस्पतिकायिकों की अवगाहन्त तो जधन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण ही होती है इससे अधिक नहीं होती है ऐसा भाव है "सरीगा अणित्थंथसंठिया" बादरवनस्पतिकायिक जीवों के शरीर हैं वे अनित्थंस्थ संस्थान वाला है-नियत संस्थान वाले नहीं हैं। "ठिई जहन्नेणं अंतो मुहत्तं, उक्कोसणं दसवाससहस्साई" स्थिति इनकी जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से दस हजार वर्ष की है यह स्थिति भी प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायकी अपेक्षा से ही जाननी चाहिये इस साधारण शरीर वनस्पतिकायकी स्थिति तो क्या जघन्य क्या उत्कृष्ट दोनों प्रकार से अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही होती है, यह तात्पर्य है ''जाव दुगइया तिआगइया" ये तिर्यञ्च और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अतः द्विगतिक तथा तिर्यञ्च मनुष्य और देवगति से आकर जीव इनमें उत्पन्न होते हैं इसलिये ये व्यागतिक तीन आगतिक वाले कहे गये हैं। क्योंकि पुष्पादि शुभस्थानों में देवों की उत्पत्ति होती है। यहां भी यह जो तीन गति से अनेक रूप છે. તેમ સમજવું. બાકી સાધારણ શરીર વનસ્પતિ કાયિકોની અવગાહના તે જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ બન્ને પ્રકારથી આંગળીના અસંખ્યાતમાં ભાગપ્રમાણ જ હોય છે. તેનાથી વધારે હતી नथी. तेवो मा समाव. "सरीरगा अणित्थंथ संठिया" मा६२ १५तिथि जवान २ शरी। छ, त मनित्स्थ सस्थान वा छे. थेट नियत संस्थानवाणा डरता नथी. "ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साई" तेयोनी स्थिति न्यथी ये अंतर्भूतनी છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી દસ હજાર વર્ષની છે. આ સ્થિતિ પણ પ્રત્યેક શરીર વનસ્પતિકાયિક જીવની અપેક્ષાથી જાણવી. આ સાધારણ શરીર વનસ્પતિકાયિકોની સ્થિતિ જઘન્ય અથવા ઉત્કૃષ્ટ એમ બન્ને પ્રકારની અંતમુહૂર્ત પ્રમાણુજ હોય છે. આ કથનનું એજ તાત્પર્ય છે. ____ "जाव दुगइया ति आगइया' मा मा६२ वनस्पति यि जवानी उत्पत्ती तीय"य અને મનુષ્યમાં થાય છે. તેથી તેને દ્વિગતિક એટલે કે બે ગતિવાળા કહેલા છે. તેમજ તિર્યંચ મનુષ્ય અને દેવ ગતિમાંથી આવીને જ આ બાદર વનસ્પતિકાયિોમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી તેને “વ્યાગતિકા ત્રણ ગતિથી આવવાવાળા કહ્યા છે. કેમકે પુષ્પ વિગેરે શુભ જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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