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________________ १५० जीवाभिगमसूत्र पनत्ता' वनस्पतिकायिकजीवाः द्विविधाः-द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ता-कथिता इति । द्वैविध्यमेव दशेयति'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा--'सुहुमवणस्सइकाइया य बायरवणस्सइकाइया य' सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च बादरवनस्पतिकायिकाश्च, सूक्ष्मत्वं सूक्ष्मनामकर्मोदयात् बादरत्वं बादरनामकर्मोदयात् न तु सूक्ष्मत्वमरूपत्व बादरत्वं च स्थूलत्वं बदरकपित्थयोरिवेति । 'से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया' अथ के ते सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः, इति प्रश्नः, उत्तरयति–'सुहुमवणस्सइ काइया दुविहा पन्नता' सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः द्विविधाः-द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः, 'तं जहा' तद्यथा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च तहेव' तथैव-अन्यइसके उतर में प्रभुकहते हैं- "वणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता' हे गौतम ! वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-"तंजहा' जैसे "मुहुमवणस्सइकाइया य, बायरवणस्सइकाइया य" सूक्ष्मवनस्पतिकायिक और बादरवनस्पतिकायिक जिन वनस्पतिकायिक जीवों के सूक्ष्म नामकर्म का उदय होता है वे सूक्ष्मवनस्पतिकायिक है और जिनवनस्पतिका. यिकों के बादर नामकर्म का उदय होता है वे बादर बनस्पतिकायिक हैं। यह सूक्ष्मता अल्पत्व, और बादरता स्थूलता बदर और कपित्थ के जैसा सापेक्ष नही हैं । किन्तु सूक्ष्मत्व और बादरत्व नाम कर्म के अधीन है । से कि तं सुहमवणस्सइकाइया" हे भदन्त ! सूक्ष्मवनस्पतिकायिकजीवों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता" सूक्ष्मबनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। "तं जहा" जैसे - "पज्जतगा य अपज्जत्तगा य" पर्याप्तक और अपर्याप्तक "तहेव" इस सम्बन्ध में शरीर आदि द्वारों का कथन सूक्ष्म पृथिवीकायिक के प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये । सूक्ष्म पृथिवीकाउत्तरमा लगवान महावीर प्रभु ४३ छ-वणस्सइकाइया, 'दुविहा पण्णता'- गौतम वनस्पतियो प्रारना हवामां आवेता छ. 'तं जहा तमे प्रअ मा प्रभाग सभा -"मुहुमवणस्सइकाइया य, बायरवणस्सइकाइया य" सूक्ष्मवनस्पतिय भने બાદરવનસ્પતિકાયિક જે વનસ્પતિ કાયિક જીવને સૂક્ષ્મ નામ કમને ઉદય હોય છે. તેઓ સૂમ વનસ્પતિકાયિક કહેવાય છે. અને જે વનસ્પતિકાયિક જીવોને બાદર નામ કમને ઉદય થાય છે, તેઓ બાદર વનસ્પતિક યિક કહેવાય છે. આ સૂક્ષ્મ પણ, અ૯૫૫ણુ અને બાદર -સ્થલપણુ બોર અને કપિત્થ-કાંઠાની જેમ અપેક્ષા વાળું હોતું નથી. પરંતુ સૂક્ષમત્વ અને બાદવ નામકર્મોને આધીન છે. “से कि तं सुहमवणस्सइकाइया" लगपन सूक्ष्म वनस्पतिय वान टला २ना मेह! सा छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ -सुहमवणस्लइकाइया दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्म वन२५तिथि: 04 में प्रारना सा छे "तं जहा" ते स! प्रभारी छ. "पज्जतगा य अपज्जत्तगा य" पर्यात भने मर्यात "तहेव" या सूक्ष्मवनस्पति ना જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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