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________________ श्रीवीतरागाय नमः श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालव्रतिविरचितया प्रमेयद्योतिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कतम् । ॥श्रीजीवाभिगमसूत्रम् ॥ प्रथमा प्रतिपत्तिः मङ्गलाचरणम् वीरं प्रणम्य भावेन गौतमं गणनायकम् । जैनी वाचमुपादाय, प्रयतेऽहं यथामति ॥१॥ जीवाभिगमसूत्रस्य टीका प्रमेयद्योतिका । घासीलालेन मुनिना तन्यते सुखबोधये ॥२॥ जीवाभिगमसूत्र का हिन्दी अनुवाद प्रथमप्रतिपत्ति मङ्गलाचरण 'वीरं प्रणम्य भावेन' इत्यादि (अहम्) मैं (भावेन) भावपूर्वक (वीरम्) अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु को और (गणनायकम्) गणधरों के नायक-नेता (गौतमम्) श्री गौतम को (प्रणम्य) प्रणाम करकेवन्दना नमस्कार करके (यथामति) मति के अनुसार (जैनों वाचम् उपादाय) जिनेन्द्र देव की वाणी को हृदयंगम कर (प्रयते) इस शास्त्र की टीका-व्याख्या करने का प्रयत्न करता हूँ-अतः (सुखबोधये) इस शास्त्र में कथित विषय अच्छे प्रकार से समझा जा सके इसके लिये (धासीलालेन मुनिना) मुझ घासीलाल मुनि के द्वारा (जीवाभिगमसूत्रस्य प्रमेयद्योतिका જીવાભિગમસૂત્રને ગુજરાતી અનુવાદ પહેલી પ્રતિપત્તિ મંગલાચરણ "धीरं प्रणम्य भावेन' त्या-१-२ (अहम् ) हु (भावेन) भावपू' (वीरम् ) अन्तिम तीथ ४२ महावीर प्रभुने भने (गणनायकम्) धराना नाय (गौतमम्) गौतमने (प्रणम्य) प्रणाम शेने-१६७ नम२४२ शन (यथामति) भारी मति अनुसार (जैनी वाचम् उपादाय) जिनेन्द्र हेवनी वाणीनयम ४शन (प्रयते) मा शास्त्रनु विवेयन ४२वाने प्रयत्न ४२१ रह्यो छु.. (सुखयोधये) मात्रमा प्रतिपाति विषयने सारी रीत सभ७ शय तुथी (घासीलालेन मुनिना) भा२। बा२१-घासीदास मुनि द्वारा-(जीवाभिगमसूत्रस्य प्रमेयद्योतिका टीका) ॥ - જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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