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________________ १०६ जीवाभिगमसूत्रे 'जाई फासओ कक्खडाई आहारेंति ताइं किं एगगुणकक्खडाई आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाई आहारेंति' हे भदन्त ! यानि स्पर्शतः कर्कशानि आहरन्ति तानि किम् एकगुण कर्कशानि आहरन्ति यावदनन्तगुणकर्कशानि आहरन्ति, अत्र यावत्पदेन द्विगुणकर्कशादारभ्य असंख्यातगुणकर्कशपर्यन्तानां संग्रहो भवति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ? 'एगगुणकक्खडाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाइं पि आहारति' एकगुणकर्कशान्यपि आहरन्ति यावदनन्तगुणकर्कशान्यपि आहरन्ति, अत्र यावत्पदेन द्विगुणकर्कशादारभ्यासंख्यातगुणकर्कशान्तानां संग्रहो भवतीत्युत्तरम् , 'एवं जाव लुक्खा नेयच्या' एवम्-कर्कशवदेव यावक्षाण्यपि ज्ञातव्यानि, अत्र यावत्पदेन मृदुगुरुलघुशीतोष्णस्निर धानां स्निग्ध इन स्पर्शों का ग्रहण हुआ है । जाइं फासओ कक्खडाई आहारेति ताई कि एग. गुणकक्खडाई आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाई आहारेंति" यदि वे स्पर्श की अपेक्षा कर्कश स्पर्श वाले द्रव्यों का आहार करते हैं तो क्या एक गुण कर्कश स्पर्श वाले द्रव्यों का आहार करते हैं या यावत् अनन्तगुण कर्कश स्पर्श वाले द्रव्यों का आहार करते हैं ? यावत् पद से द्विगुण कर्कश स्पर्श से लेकर असंख्यात गुणकर्कश स्पर्श तक का ग्रहण हुआ है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं । "गोयमा एगगुणकक्खडाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाइं पि आहारेंति' हे गौतम ! वे सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव एक गुण कर्कश स्पर्श वाले द्रव्यों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्त गुण कर्कश स्पर्श वाले द्रव्यों का भी आहार करते हैं। यहां यावत्पद से द्विगुण कर्कश स्पर्श से लेकर असंख्यात गुण कर्कश स्पर्श से युक्त द्रव्यों का ग्रहण हुआ है। ‘एवं जाव लुक्खा नेयव्वा' कर्कश स्पर्श के जैसे ही यावत् रूक्ष स्पर्श का भी कथन कर लेना चाहिये । यहां यावत्पद से मृदु गुरु लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध इन स्पर्शों का संग्रह हुआ है । स्पर्श की अपेक्षा गौतम स्वाभीनी प्रश्न-'जाइं फासओ कक्खडाई आहारेंति, ताई कि एगगुणकक्तडाई आहारेंति, जाव अणंतगुणकक्खडाई आहारति ?' २५शनी मपेक्षाये ४४० २५શવાળાં જે દ્રવ્યને તેઓ આહાર કરે છે, તે દ્રવ્યો શુ એક ગણું કર્કશ સ્પર્શવાળા હોય છે, કે બેથી લઈને અનંત ગણાં કર્કશ સ્પર્શવાળાં હોય છે ? महावीर प्रभुने। उत्तर-“गोयमा ! एगगुणकक्खडाई पि आहारेति, जाव अणंतगुणकक्खडाइं पि आहारैति" गीतम! सूक्ष्म पृथ्वीय । ॐ ४२२५शवाजi દ્રવ્યોને પણ આહાર કરે છે, બેથી લઈને દસ ગણાં કર્કશ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યોને પણ આહાર કરે છે, સંખ્યાત ગણાં કર્કશ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યોને પણ આહાર કરે છે, અસંખ્યાત ગણું કર્કશ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યોનો પણ આહાર કરે છે અને અનંત ગણું કર્કશ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યોને ५॥ माहार रेछ. "एवं जाव लुक्खा नेयव्वा"श-५शन १ थन भृड, गुरु सधु शीत, ઉણ, સ્નિગ્ધ અને સક્ષ સ્પર્શેના વિષયમાં પણ સમજી લેવું જેમ કે પ્રશ્ન-સ્પર્શની અપે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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