________________
राजप्रश्नीयसूत्रे
मूलम् - तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुकबालभावे विष्णायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए णवंग सुत्तपडिबोए अट्ठारस विदेसिप्पगार भासाविसारए गायरई गंधब्वणकुसले सिंगारागार चारुवेसे संगय गय हसियभणिय चेट्टिय विलास संलावुल्लावनिउणजुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोग समत्थे साहस्सिए विद्यालयारी यावि भविस्स । सू. १७२ ।
छाया - ततः खलु स दृढप्रतिज्ञो दारक उन्मुक्तबालभावो विज्ञातपरिणतमात्रो यौवनकमनुप्राप्तो द्वासप्ततिकलापण्डितो नवाङ्गसुप्तप्रतिबोधकः अष्टादशसत्सम्मान करेंगे, फिर - विपुल प्रीतिदान जो कि उनको जीवनभर के लिये जीविका का योग्य हो सकेगा - देंगे, यह सब कुछ करके, फिर वे उस कला चार्य को विसर्जित कर देंगे । टीकार्थ - स्पष्ट हैं || सू० १७१ ॥ "तए णं से ददपइण्णे दारए-इत्यादि
४२०
DEN
मूलार्थ - " तणं से दढपणे -" इसके बाद वह दृढप्रतिज्ञ कुमार जिसका "उमुकबालभावे विण्णायपरिणयमिते-" बालभाव व्यतीत हो चला है, और - विज्ञान जिसका शीघ्रता से परिपक्व अवस्था में पहुंच गया है. "जोब्वणगमणुपत्ते - " यौवनावस्थाशाली हुवा. " बाबत्तरि कलापंडिए - णबंगसुत्तपडिबोहएअट्ठारस विहदेसिप्पगारभासाविसारए - " ७२ - कलाओं में विशेषरूपसे निष्णात हुवा. सुप्त अपने नवाङ्गो को दो कान - दो नेत्र - दो नासिका छिद्र - एक जीभ સમ્માનીત કરશે પછી તેમની જીવિકા માટે પર્યાપ્ત થાય તેટલું પ્રીતિજ્ઞાન તેમને આપશે. આ બધુ કરીને પછી તેઓ તેમને વિસર્જિત કરશે.
ટીકા સ્પષ્ટ છે. શાસૂ॰ ૧૭૧૫
"तए णं से दढपणे दारए" इत्यादि ।
भूसार्थ - तए णं से दढपइयो" त्यार पछी ते दृढप्रतिज्ञ कुमार-डे भेअनु “उम्मुक्कबालभावे विष्णायपरिणयमित्ते" भाजप पसार था गयु छे भने भेभनु विज्ञान म्हभ परियहुवावस्था सुधी पोथी गयुं छे. "जोव्वणगमणुपत्ते' युवावस्था संपन्न थशे. "वावत्तरिं कलापंडिए णवंगमुत्तपडिवो हए - अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए" ७२ लाखमां विशेष३५थी निष्णात थयेले। ते पोताना सुप्त नवाङ्गोने मे अन, में नेत्र, में नासिछिद्र, थोड कुल, ये स्थर्शन धन्निय, अने
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨