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सुबोधिनी टीका स. १६६ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ३८५
मूलम्-सूरियाभस्स णं भते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं भंते ! सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहि उववजिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति तं जहा-अढाइ दित्ताइ विउलाई विस्थिपणविउलभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणबहुजायरूवरययाइ आओगपओगसंपउत्ताइ विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइ बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाइ बहुजणस्स अपरिभ्याइ, तत्थ अन्नयरम्मि कुलम्मि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ ॥सू० १६६ ॥
छाया-सूर्याभस्य खलु भदन्त ! देवस्य कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । स खलु भदन्त ! सूर्याभो देवः तस्माद्देवलोकाद् आयुःक्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण अनन्तरं चयं त्यक्त्वा कुत्र
सरियाभस्स णं भंते-? देवस्स केवलयं कालं ठिई पण्णत्ता-" इत्यादि ___ मूलार्थ-प्रश्न-"सूरियाभस्स णं भंते-? देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता-" हे भदन्त-? सूर्याभ देव की स्थिति कितनी कही गई है-३ उत्तर-"गोयमा-? चत्तारि पलिओवमाइ टिई पण्णत्ता-" हे गौतम-? चार पल्योपम की सूर्याभदेव की स्थिति कही गई है । प्रश्न-“से ण भंते-? सूर्याभे देवे ताओ देवलोगाओ आउ रखएणं भवक्खएणं ठिइक्वएण अणंतर चय चइत्ता कहिं गभिहिइ कहिं उपवजि हिइ-' हे भदन्त-? वह सूर्याभ देव उस देवलोकसे आयु क्षय
"मृरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" इत्यादि.
भूतार्थ-प्रश्न "सरियाभ स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे महन्त ! सूर्याभवनी स्थिति सी डेवामा मावी छ ? उत्तर--गोयमा? चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता-" गौतम ! सूर्यालवनी स्थिति या२५८या ५ टक्षी ४ामा मावी छ प्रश्न-' से ण भंते ! सूरियामे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्रखएण ठिइक्खएण अणतर चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ कहिं उववज्जिहिइ-" लत ! ते सूर्यालहे ते पाथी मायुक्षय-मक्षय
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨