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________________ सुबोधिनी टीका सू. १६२ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशोराजवर्णनम् ३६७ रइ त सेय खलु तव पुत्ता ! पएसिं रायं केणइ सत्थप्पओगे वा जाव उद्दवित्ता सयमेव रजसिरि कारेमाणस्स पालेमाणस्स विहरित्तए। तए णं सूरियक ते कुमारे सूरियकताए देवीए एव' वुत्ते समाणे सूरियकताए देवीए एयमलु णो आढाइ णो परियाणाइ तुसिणीए संचिटइ, तए णं तीए सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-मा णं सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रण्णो रहस्सभेयं करिस्सइत्ति कटु पएसिस्स रणो छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणिय य विवराणिय अंतराणि य पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ ॥ सू० १६२॥ छाया-ततः खलु तस्याः सूर्य कान्ताया देव्याःअयमेतद्रूप आध्यात्मिकः यावत् समुदपद्यत-प्रत्प्रभृति च खलु प्रदेशी राजा श्रमणोपासको जातस्तत्प्रभृति च खलु रा य च राष्ट्रं च यावत् अन्तःपुरं च मां च जनपद च अनाद्रियमाणो विहरति, तच्छ्रेयः खलु मे प्रदेशिन राजानं केनापि शस्त्रप्रयोगेण वा अग्निप्रयो "तएणं तीसे सूरियकंताए देवीए'' इत्यादि ॥ मूलार्थ–'तए णं-' इसके बाद 'तीसे सूरियकताए देवीए-' उस मूर्यकान्ता देवी को 'इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पन्जित्था-' यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् विचार उत्पन्न हुवा-'जप्पभिई च ण पएसी राया समणोवासए जाए-' जिस दिन से प्रदेशी राजा श्रमणोपासक हुवे हैं 'तप्पभियं च ण रज्जच-' उसी दिन से उन्होंने राज्य के प्रति, राष्ट्र के प्रति. यावत् अन्तःपुर के प्रति, तथा—मेरे प्रति, और-जनपद देश के प्रति उपेक्षा "तएण तीसे सूरियकताए देवीए” इत्यादि। भूखा-"तए ण'' त्या२ ५छी "तीसे सूरियकंताए देवीए" ते सूत। देवीन "इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पन्जित्था' 20 तनो माध्यामि यावत (क्यारे उत्पन्न थयो. "जभियं च ण पएसी राया समणावासए जाए" हिवस थी प्रदेशी २।०४श्रमापास या छ, “तप्पभियं च ण रज्जं च" ते हिसथी તેમણે રાજય પ્રતિ, રાષ્ટ્રના પ્રતિ, યાવત અંતપુર પ્રતિ તેમજ મારા પ્રતિ અને अनपढ-देशना प्रति अपेक्षा धा२१ ४२दीधी छे. "तं सेयं खलु मे पएसिं रायं શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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