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सुबोधिनी टीका सू. १५४ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशोराजवर्णनम् ३२९ देवानुप्रियाः ! अयः, अतिगाढबन्धनबद्धं मया देवानुप्रियाः ! अयः, अशिथिलबन्धनबद्धं मया देवानुप्रियाः ! अयः, अत्यन्तगाढबन्धनबद्धं देवानुप्रियाः! अयः, नो शक्नोमि अयोभारकं त्यक्त्वा पुकभारकं बद्धम् । ततः खलु ते पुरुषाः तं तं पुरिसं एवं वयासी) तब उन पुरुषोंने उस पुरुष से ऐसा कहा-(एस णं देवाणुप्पिया ! तउ आगरे जाव सुबहु अए लब्भइ) हे देवानुप्रिय ! यह रांगे की खान है. इष्ट कान्त आदि विशेषणोंवाली है. थोडे से रांगा से ही बहुत अधिक लोहा प्राप्त किया जा सकता है। (तं छड्डेहि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, तउयभारगं बंधाहि) इसलिये ! तुम हे देवानुप्रिय ! इस लोहे के भार को छोड दो और रांगा के भार को बांध लो-लेलो (तएणं से पुरिसे एवं वयासी) तब उस पुरुषने ऐसा कहा (दूराहडे मए देवाणुप्पिया ! अए, चिराहडे मए, देवाणुप्पिया! अए अगाढवंधणबद्धे मए देवाणुप्पिया! अए, असिढिलब धणबद्धे मए देवाणुप्पिया ! अए, धणियबंधणबद्धे मए देवाणुप्पिया ! अए, णो संचाएमि अयभारंग छड्ड त्ता तउयभारगं बंधित्तए) हे देवानुप्रियो ! इसलोहके भारको मैं बहूत दूर से लाया हूं, बहुत समय से इसे लादे हुए हूं, हे देवानुप्रियो ! मैने इसे बहुत ही गाढ बंधन से बांधा है अर्थात बहुत अधिक कसकर बांधा हुआ है. अशिथिल बंधन से-अब खुल सके ऐसे बन्धन से नहीं बांधा है किन्तु हे देवानुप्रियो ! मैंने इस लोहे को प्रचुर बंधन से बांधा है, अतः अब मैं अयोभार को छोडकर त्रपुक भारको ग्रहण करने के लिये समर्थ नहीं है अर्थात् लोहे के भार को छोड कर रांगा के भार को नहीं लूं । (तएणं ते अयभारग, तउयभारग बंधाहि) मेटा भाटे तमे है देवानुप्रियो ! २॥ सामना मारने भूडी | मने गाना मारने मांधी सो. (त एण से पुरिसे एवं वयासी) त्यारे ते ५३षे 20 प्रमाणे ४यु-(दूराहडे मए देवाणुप्पिया! अए, चिराहडे मए, देवाणुप्पिया अए गाढवंधणबद्धे मए देवाणुप्पिया! अए, धणिअबंधणबद्धे मए देयाणुप्पिया ! अए, णो संचाएमि अयभारग छ डेता तउयभारग बधित्तए) : हेवानुप्रियो ! २मा सोमना मारने हुमा ४ हस्थी साव्यो છું, ઘણું સમયથી મેં આને ઉપાડી રાખે છે હે દેવાનુપ્રિયે ! આને મેં સખત ગાઢ બં ધન બાંધ્યો છે એટલે કે મેં આને કસીને બાંધે છે. હવે ખોલી શકાય એવા બંધનથી બાંધ્યું નથી પણ હે દેવાનુપ્રિયે ! મેં આ લેખંડના ભારને પ્રચુર બંધનથી બાંધ્યું છે. એટલા માટે હવે હું આ લેખંડના ભારને ત્યજીને ત્રપુકભારને ગ્રહણ કરવામાં સમર્થ નથી. એટલે કે લોખંડના ભારને મૂકીને રાંગના ભારને હવે
60 नी. (तए ण ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचाएंति बहुाह
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨