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सुबोधिनोटीका. सूत्र १४६ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २७५ शुमेकान्ते एडति (मुन्चति) परिकर मुञ्चति एवमवादीत् अहो ! मया तेषां पुरुषाणामशन नो साधितमिति अपहतमनःसंकल्पचिन्ताशोकसागरसपविष्टः करतलपर्यस्तमुखः आत ध्यानोपगतः भूमिगतष्टिको ध्यायति ततः खलु ते पुरुषाः काष्ठानि छिन्दन्ति, यत्र व स पुरुषः तत्र वोपागच्छन्ति, माणे संते परितंते निविष्णे समाणे परसु एगते एडेइ) इसके बाद जब उस पुरुष को उस काष्ठ के दो टुकडे यावत् संख्यात् टुकडे करने पर भी जब अग्नि दिखाई नहीं दी, तब वह थक कर, लान्त होकर, परितान्त होकर विशेष दारिवत हआ और उसने उस कुल्हाडी को किसी एकान्त स्थान में रख दिया (परियर मुयइ) कमर का बंधन भी खोल दिया (एवं वयासी) इस प्रकार कहने लगा (अहो मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिए त्तिक आ हयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करतलपलस्थमुहे अझोणोवगए भूमिगयदिट्ठीए झियाई) अरे ! मैं उन पुरुषों के लिये भोजन तैयार नहीं कर सका अब क्या करूं! इस प्रकार विचार कर वह बडा ही दुःखित हुआ उसकी समस्त मानसिक अभिलाषाएँ नष्ट हो गई
और वह चिन्ता, एवं शोक रूपी समुद्र में निमग्न हो गया. कपोल पर हथेली रख कर आत ध्यान करने लगा दृष्टि उसकी नीचे जमीन की ओर हो गई -इस प्रकार वह चिन्ता में फंस गया (तए णं ते पुरिसा कहाइ छिदंति) अब उन पुरुषोंने जब लकड़ियों को काटलिया- तब वे (जेणेव
वा जोइ अपासमाणे संते तंते निविण्णे समाणे परसु एगते एडेइ) ત્યાર પછી જ્યારે તે પુરૂષને તે કાષ્ઠના બે કડાઓ યાવત્ સંખ્યાત કકડા કર્યા પછી પણ જ્યારે અગ્નિ જેવામાં આવ્યું નહિ, ત્યારે તે થાકીને, કલાન્ત થઈને, પરિતાન્ત થઈને વિશેષ દુખિત થયો અને તેણે તે કુહાડીને કોઈ એકાંત સ્થાને મૂકી हीधी (परियर' मुयइ) ४भरनु मन ५५५ साली नाभ्यु (एव वयासी) पछी ते 20 प्रभाये यो. (अहो मए तेसिं पुरिसाण असणे नो साहिए त्ति कट्ट ओहयमणस कप्पे चिंतासोगसागरस पविट करतलपल्लत्थमुहे अट्टझाणोवगए भूमिगयदिट्टीए झियायइ) अरे ! ते भाणुसो भाटे मान બનાવી શક્યું નહિ. હવે શું કરું ? આ પ્રમાણે વિચાર કરીને તે ખૂબ જ દુ:ખી છે. તેની બધી માનસિક ઇચ્છાઓ નષ્ટ થઈ ગઈ, અને તે ચિંતા અને શોકરૂપી સમુદ્રમાં નિમગ્ન થઈ ગયે. કપાળ પર હથેળી મૂકીને તે આર્તધ્યાન કરવા લાગ્યો. तेनी न०४२ भान त२५ नीय थ ४, माम ते वितामा भी गयी. (तएण ते पुरिसा कठ्ठाई छिदंति) हवे ते भासाम दामी पी सीधा त्यारे तमा
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૨