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सुबोधिनी टीका सू. १३४ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशीराजवणनम् २१३ वक्तव्यतया सुबह यावद् उपपन्ना तस्याः खलु आर्यिकायाः त्वं नप्तको ऽभवः इष्टः यावत् किमग ! पुनर्दर्शन तया ? सा खलु इच्छइ मानुष्यं लोक शीनमागन्तु, नैव खलु शक्नोति शीघ्रभागन्तुम् ।।
चतुर्भिः स्थानः प्रदेशिन ! अधुनोपपन्नो देवो देवलोकेषु इच्छेत मानुष्यं लोकं हव्यमागन्तुं नैव खलु शक्नोति । अधुनोपपन्नो देवो देव प्रदेशिन ! इस श्वेतांचिका नगरी में तुम्हारी आर्यिका-दादी भी धार्मिक यावत धर्मानुरागादि विशेषणों से विशिष्ट हुई है (सा ण अम्हवत्तव्ययाए सुबहु जाव उववन्ना, तीसे ण अजियाए तुमं ण तुए होत्था इट्टे जाव किम स पुणपासणयाए) वह हमारी वक्तव्यता के अनुसार-मान्यता के अनुसार अतिशय बहुत अधिक पुण्य का उपार्जन करके और कालमास में काल कर के देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हो गई है। उस आर्यिका-दादी के तुम पौत्र हुए हो, जो उसे तुम इष्ट कान्त आदि विशेषणों वाले थे, और उदुम्बर पुष्य के समान उसे सुनने के लिये उस समय तुम दुर्लभ थे, फिर तुम्हारे देखने की बात ही क्या कहनो, (साण इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए णोचेव ण संचाएइ हन्धमागच्छत्तिए) वह आर्यिका-दादी मनुष्यलोक में आनेकी इच्छा तो करती है, परन्तु आ नहीं सकती है ! इसमें चार कारण हैं जो इस प्रकार से हैं-(चहि ठाणेहि पएसी• अहणोववन्नए देवे देवलोएसु इच्छेजा माणुस लोग हन्धमागच्छित्तए, जो चेव ण संचाएइ) બિકા નગરીમાં તમારા આર્થિક દાદી પણ ધાર્મિકી વાવત ધર્માનુરાગ વગેરે વિશેષણ qा थया छ. (सा णं अम्हं वत्तवयाए सुबई जाव उचवन्ना, तीसे ण
अज्जियाए तुमं णत्तुए होत्था इठे जाव किमंगपुणपासणयाए) ते अमारी વક્તવ્યતા મુજબ-માન્યતા મુજબ અતિશય પુણ્યનું ઉપાર્જન કરીને કાલમાસમાં કાલ કરીને દેવલોકમાંથી કઈ પણ એક દેવલોકમાં દેવની પર્યાયથી જન્મ પામ્યાં છે. તે આયિકા-દાદીના તમે પૌત્ર છે, તમે તેના માટે ઈષ્ટ કાન્ત વગેરે વિશેષણવાળા હતા અને ઉર્દુબર પુષ્પની જેમ તમે તેના માટે શ્રવણદુર્લભ હતા, તે પછી તમારી नेपानी तो पात ० शी ४२वी. (सा णं इच्छइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए णो चेव ण संचाएइ हव्यमागच्छत्तिए)ते माया ही मनुष्यतामा भाववानी ઈચ્છા તે રાખે છે, પણ આવી શકતા નથી. આનાં ચાર કારણો છે તે આ પ્રમાણે छ. (चऊहिं ठाणेहि पएसी अहुणोववन्नए देवे देवलोएमु इच्छेजा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव ण संचाएइ) हे प्रशिन ! ते या२ ॥२॥
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨