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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे नैव खलु शक्नोति । ३ अधुनोपपन्नकः नरकेषु नैरयिकः निरयवेदनीये कर्मणि अक्षीणे अवेदिते अनिर्जिणे इच्छति मानुष्य लोक शीघ्रमागन्तु नैव खलु शक्नोति। ४ एवम् अधुनोपपन्नको नरकेषु नैरथिको निरयाऽऽयषि कमणि अक्षीणे अवेदिते अनिर्माण इच्छति मानुष्य लोक शीघ्रमागन्तु नैव खलु शवनाति शीघ्रमागन्तुम्' इत्येतेश्चतुर्मिः स्थानैः प्रदेशिन् ! अधुनोपपन्नकः पालेहिं भुज्जो भुज्जो समहि ट्ठिजमाणे इच्छइ, माणुसं लोगं हन्धमागच्छित्तए नो चेव ण संचाएइ) अधुनोपपन्न नारक नरकों में परमाधार्मिकरूप नरकपालों द्वारा बार बार आक्रम्यमाण होता हुआ यह चाहता है कि मैं मनुष्यलोक में शीघ्र उत्पन्न हो जाऊं, परन्तु वह मनुष्यलोकमें शीघ्र उत्पन्न नहीं होसकता है२ (३अहुणोववन्नए नरए सु नेरइए निरयवेयणिजसि कम्मंसि अवखीणसि अवेइयंसि अनिजिन्सि इच्छइ माणुस लोग हव्चमागच्छित्तए णो चेव ग संचाएइ हच्चमागच्छित्तए) अधुनोपपत्रक नारक नरक में नरकभोग्य अशातवेदनीय कर्म के अक्षीण होने पर, अननुभूत होने पर एवं अनिर्जिण नाश होने पर, मनुष्यलोक में आनेका अभिलाषी होता हुआ भी नहीं आ सकता है३ (४ एवं नेरयासि अवखीणे अवेइए अणिज्जिण्णे. इच्छेज्जा माणुस्स लोग हव्यमागच्छित्तए नो चेव ण संचाएइ) इसी प्रकार चौथा कारण यह है कि उसके नरकसंबधी आयु क्षीण नहीं हुआ है, उसका वेदन नहीं हो चुका है, तथा नारक आयु की निर्जरा भी नहीं हुई है इसी कारण से वह मनुष्यलोग में आने को इच्छाकरता हुआ भी नहीं आ सकताहै।(इच्चेच्छित्तए नो चेव ण संचाएइ) अधुनापन्न ना२४ ना२मा ५२भाषाभि४३५ નરકપાલ વડે વારંવાર આકંમ્યમાણ થઈને તે એમ ઈચ્છે છે કે હું મનુષ્યલેકમાં જલદી उत्पन्न थाG ५२तु ते मनुष्यसोभi real sपन्न | शzतो नथी, २. (३अहणोववन्नए नरएमु नेरइए निरयवेयणिज्जसि कम्मसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अन्निज्जिन्नसि इच्छइ माणुस लोगं हवमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएइ हव्चमागच्छित्तए) आधुना५पन्न ना२४ न२४मा लाग्य भात वेदनीय भमक्षाए। હેવાથી અનનુભૂત હોવાથી અને અનિજીણ હેવાથી મનુષ્યલકમાં આવવાની અભિલાષા रामे छे छतांये ते त्यांची भुत २६ शzal नथी. मन (४ एवं नेरइयाउंसी अवखीणे अवेइए अणिज्जिण्णे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ) मा प्रमाणे याथु १२ मा प्रभारी छ । न२४ धी તેનું આયુ ક્ષીણ થયું નથી, તેનું વેદન થયું નથી તેમજ નારક આયુની નિજ રાપણ થઈ નથી એથી જ તે મનુષ્યલકમાં આવવાની ઈચ્છા ધરાવે છે છતાંએ આવી શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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