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________________ - १७२ राजप्रश्नीयसूत्र छाया-ततः खलु स प्रदेशी राजा केशिन कुमारश्रमणम् एवमवादीत-तत्किं खलु भदन्त ! युष्माकं ज्ञानं वा दर्शन' वा, येन यूयं मम एतद्रूपम् आध्यात्मिक यावत् संकल्प समुत्पन्न' जानीथ पश्यथ ? ततः खलु स केशीकुमारश्रमण : प्रदेशिन राजानं एवमवादीत एवं खलु प्रदे. शिन ! अस्माकं श्रमणानां निर्ग्रन्थानां पञ्चविध ज्ञान प्रज्ञप्तम्, तद्यथाआभिनिचोधिकज्ञानम् १, श्रतज्ञानम् २, अवधिज्ञानम् ३, मनःपर्यवज्ञानम्४, केवलज्ञानम् ५ । अथ किं तद् आभिनिबोधिकज्ञानम् ? आभिनिबोधिकज्ञान 'तए णं से पएसी राया' इति' इत्यादि। सूत्रार्थ--(तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमण एवं क्यासी) पुनः उस प्रदेशी राजाने केशी कुमारश्रमण से ऐसा कहा-(से केण भते ! तुज्झ, नाणे वा दसणे वा जेणं तुज्झ मम एयारूवं अज्झ स्थिय जाव संकप्प समुप्पण जाणह पासह ?) हे भदन्त ! ऐसा आपका वह कौनसा ज्ञान अथवा दर्शन है कि जिसके द्वारा आपने मेरे इस उत्पन्न हुए आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प को जाना है, और देखा है (लए ण से केसी कुमारसमणे पएसिं राय एवं वयासी) तब केशीकुमार. श्रमणने उस प्रदेशी राजा से ऐसा कहा-(एवं खलु पएसी अम्हें समणाण णिग्गं थाण' पंचविहे नाणे पण्णत्ते तं जहा-आभिणिबोहियनाणे, सुय नाणे, ओहिनाणे, मणपज्जवनाणे केवलणाणे)हे प्रदेशिन! हम श्रमण निर्ग्रन्थों के मत में पांच प्रकार के ज्ञान कहे गये हैं जैसे आभिनिबोधिकज्ञान,-मतिज्ञान श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान. मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान (से किं तं आभिणि. 'त एण से पएसी राया' इत्यादि । सूत्रार्थ-(त एण से पएसी राया केसि कुमारसमण एवं वयासी) ५॥ ते प्रदेश २ शाभार भने २॥ प्रभारी (से केण भते ! तुज्झ वाणे वा दसणे वा जेण तुज्ज्ञ मम एयारूव अज्झत्थिय जाव संकप्प समुप्पण जाणह पासह ?) महत ! पानी पासे ये ४४ तनु शान દર્શન છે કે જેના વડે આપ મારામાં ઉત્પન્ન થયેલ આધ્યાત્મિયાવત્ મનોગત સંકલ્પને one या छो. मने बने या छो. (तए णसे केसीकुमारसमणे पएसिं राय एवं वयासी) त्यारे उशीभा२ श्रमणे ते अशी रासने 20 प्रमाणे ह्यु(एवं खलु पएसी! अम्ह समणाण णिग्गथाण पंचविहे नाणे पण्णते त जहा-आभिणियोहियनणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मणपज्जवनाणे, केवलणाणे) હે પ્રદેશિન ! અમારા શમણ નિગ્રંથના મતમાં પાંચ પ્રકારના જ્ઞાન કહેવામાં આવ્યાં શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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