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________________ सुबोधिनी टीका सू. १२६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजोवप्रदेशिराजवण नम् स्थापयति, रथात् प्रत्यवरोहति, तुरगान् मोचयति, प्रदेशिन राजानमेवमवादीतअत्र खलु स्वामिन् ! अश्वानां श्रम क्लीम सम्यक अपनयामः । ततः खलु स प्रदेशी राजा रथात् प्रत्यवरोहति, चित्रेण सारथिना सार्धम् अश्वानां श्रम क्लीम सम्यक अपनयन् पश्यति यत्र केशिकुमारश्रमण महातिमहालयायाः परिषदो मध्यगत महता शब्देन धर्ममाख्यान्त दृष्ट्वा अयमेतद्रूप आध्यात्मिकः यावत् समुदपद्यत-जडाः खलु भो ! जड पर्युपासते, मुण्डाः स्थको लेकर गया (तुरए णिगिण्हइ) वहां पहुंचते ही उसने घोडों को रोक लिया (रह ठवेइ) और रथको खड़ा कर दिया (रहाओ पचोरुहइ) रथ के खडे हो जाने पर वह रथ से नीचे उतरा (तुरए मोएइ) नीचे उतर कर घोडों को रथ से खोल दिया (पएसि राय एवं वयासी) फिर उसने प्रदेशी राजा से ऐसा कहा-(एह ण सम किलाम सम्म अवणेमो) हे स्वामिन् ! रथ खडा हो चुका है आप उतर आइये, मैं यहां पर घोडों के श्रम को एवं उनकी मानसिक ग्लानि को ठीक तरह से दूर करलू (तए ण से पएसी राया रहाओ पञ्चोरुहइ) सारथि के इस कथन से वह पदेशीराजारथ से नीचे उतरा (चित्तेण सारहिणा सद्धिं आसाण सम किलाम सम्म अवणेमाणे पासइ) नीचे उतर कर उसने चित्र सारथि के साथ वहां धोडों का श्रम एवं क्लम (थकावट) अच्छी तरह से दूर करते हुए, एवं विश्राम करते हुए उस ओर देखा (जत्थ केसिकुमारसमण महइमहालियाए परि. साए मज्झगय महया सद्दे ण धम्ममाइक्खमाण पासित्ता इमेघारूवे अझथिए (तुरए णिगिण्हइ) त्यां पडायतi - तो पासमान Sell राज्या. (रह ठवेइ) भने २थने योमायो. (रहाओ पचोरुहइ) २५ यारे लो २ही गयो त्यारे ते स्थमाथी नीये तयी. (तुरए मोएइ) नीचे उतरीन घामाने २थमाथी भुत यो. (पएसि राय एवं वयासी) त्या२ पछी ते अशी Anने 20 प्रमाणे धु(एह ण सामी! आसाण सम किलाम सम्म अवणेमो) स्वाभिन ! २थ ઉભો થઈ ચૂક્યું છે. આપ નીચે ઉતરે. હું અહીં ઘોડાઓને શ્રમને અને તેમની भानसि मानिने सारीशत (२ ४N G.(तएण से पएसीरायारहाओ पच्चोरुहइ) सारथिना मा ४थनथी ते प्रदेशी २० २थमाथी नीये अत्या. (चित्तण सारहिणा सद्धिं आसाण' समकिलामं सम्मं अवणेमाणे पासइ) नीये उतरीन ते शिप्रसारથિની સાથે ત્યાં ઘોડાઓનાં શ્રમ અને કલમ સારી રીતે દૂર કરતાં તેમજ વિશ્રામ ४२ता ते त२५ यु (जत्थ केसिकुमारसमण महइमहालियाए परिसाए मज्झ. गय' महया सण' धम्ममाइक्खमाण पासित्ता इमेयारवे अज्ज्ञथिए जाव શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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