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सुबोधिनी टीका सू. १२२ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १२९ भिक्सुयाणं तं जइ णं देवाणुप्पिया! पएसिस्स बहुगुणत्तरं होजा, सयस्स वि णं जणवयस्स्स ॥ सू. १२२ ॥
छाया--ततः खलु स चित्रः सारथिः केशिनः कुमारश्रमणस्यान्ति के धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्ट० तथैव एवमवादीत्-एवं खलु भदन्त! अस्माकं प्रदेशी राजा अधार्मिकः यावत् स्वकस्यापि खलु जनपदस्य नो सम्यक् करभरवृत्तिं प्रवर्तयति तद् यदि खलु देवानुप्रिय ! पदेशिने राज्ञे धर्ममारूयायात् (तदा) बहुगुणतरं खलु भवेत्, प्रदेशिनो राज्ञस्तेषां च बहूनां द्विपद वनुष्धदमृगयशुपक्षि परीमृपाणां, तेवां च बहूनां श्रमणमाहनभिक्षुका
'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि ।
सूत्रार्थ--(तए ण) इसके बाद (से चित्ते सारही) उस चित्र सारथिने (केमिस्म कुमारसमणस्स) केशीकुमारश्नमण के (अंतिए) पास धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट तहेव एवं वयासी) धर्मका उपदेश सुनकर और उसे हृदय में धारण कर हृष्टतुष्ट चित्त वाला हुआ एवं आनंद से विभोर होकर प्रीतिमनबाला हुआ. इस तरह परमसौमनम्यित होकर वह बोला (एव खलु भंते ! अम्हं पएसी राया अहम्मिए जाव सयम्स वि ण जण वयस्स नो सम्मं करभरविति पवत्तेइ) हे भदन्त ! हमारा प्रदेशी राजा अधार्मिक है यावत् वह अपने देशके प्राप्त कर से भरणपोषणरूप व्यवहार को ठीक तरह से नहीं चलता है(त जइण देवाणुप्पिया! पएसिस्स रष्णो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतर होजा, पएसिम्स रण्णो तेसिं च बहूण दुपयचउप्पयमियपसुपक्खिसरीसवाण) तो
'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि।
सूत्रार्थ-तए ण) त्या२ पछी (से चित्त सारही) ते भित्र साश्यीय (केसिस्स कुमारसमणस्स) अशीभा२ श्रभानी (अंतिए) पासेथी (धम्म सोचा निसम्म हत० तहेव एवं वयासी) घम' विष पहेश सांमजीन भने त હદયમાં ધારણ કરીને હષ્ટ-તુષ્ટ ચિત્તવાળો થયો અને આનંદિત થઈને પ્રીતિયુકતમનવાળે थयो. या प्रमाणे ५२मसोमनास्थित थने ते मोत्या. (एवं खलु मते ! अम्हं पएपी राया अहम्मिए जाव सयस्स वि ण जणवयस्स नो सम्म करभरविनि पवत्त इ) महत ! मभा। प्रशी २ion Aधार्मिी छे यावत् ते पाताना દેશના લેક પાસેથી કર મેળવીને પણ પ્રજાનું ભરણ-પોષણ તેમજ રક્ષણ કરતું નથી. (तजइ ण देवाणुप्पिया! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइखेज्जा बहुगुणतरं होज्जा, पएसिरस रणो तेसिंच बहूण दुपयचउप्पयमियपसुपक्खिसरीसवाण)
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર : ૦૨