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________________ सुबोधिनी टीका सू. ११७ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १०९ नगर्या निर्गच्छति तथैव यावद् वसन् कुणालाजनपदस्य मध्यमध्येन यत्र व केकयाई यत्र व श्वोतविका नगरी यत्रैव मृगवनम् उद्यान' तव उपागगच्छति, उद्यानपालकान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत्-यदा खलु देवा. नुप्रियाः। पार्थापत्यीयः केशीनामकुमारश्रमणः पूर्वानुपूर्व्या चरन् ग्रामानुग्राम द्रवन इहागच्छेत्, तदा खलु यूयं देवानुप्रियाः ! केशिकुमारश्रमण तहेव जाव वसमाणे कुणाला जणवयस्स मज्झमझेण जेणेव केइयअद्धे जेणेव सेय विया गयरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ) यहां से आगे चित्र सारथी जिस प्रकार श्वेताविका नगरी से निकल कर कुणाला जनपद (देश) में स्थित श्रावस्ती नगरी आया, उसी प्रकार वह श्रावस्ती नगरी से भी निकलकर केकयाई जनपद में स्थित श्वेतांविका नगरी में पहुंचा. इसलिये यहां पर पूर्व की तरह से ही समग्र पाठ संगृहीत करना चाहिये. इसी बात को सूचित करने के लिये 'जहा सेयं वियाए णयरीए णिग्गच्छई' इत्यादि यह पाठ कहा गया है. अर्थात् वह चित्रसारथि जिस प्रकार से श्वेतांविका नगरी से निकलता है, उसी प्रकार से यावत् मार्ग में पडाव डालता हुआ वह कुणाला जनपद के मध्यमध्य से होता हुआ जहां केकयाई था और जहां श्वेतांविका नगरी थी और उस में भी जहां मृगवन नाम का उद्यान था वहां आया (उजाणपालए सद्दावेइ) वहां आकर के उसने उद्या. नपालों को बुलाया. (सहाबित्ता एवं क्यासी) वहां आकर के उसने एसा कहा-(जया ण देवाणुप्पिया ! पासावचिज्जे केसी नाम कुमारसमणे पुवा. भ२५ तैयार ४शन सावी. (जहा सेयं वियाए णरीए निग्गच्छइ. तहेव जाव वसमाणे कुणाला जणवयस्स मज्झमज्झणं जेणेव केइय अद्धे जेणेव सेयंविया गयरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ) महीथी ते ચિત્રસારથી પહેલાં જેમ તે શ્વેતાંબિકાનગરીથી નીકળીને કુણાલા જનપદમાં સ્થિત શ્રાવતી નગરીમાં આવ્યું હતું, તેમજ તે શ્રાવસ્તી નગરીથી બહાર નીકળીને કેયા જનપદમાં સ્થિત શ્વેતાંબિકા નગરીમાં પહોંચે. અહીં તે પ્રમાણે જ વર્ણન સમજી से नये. से पातने मनाया भाटे । 'जहा सेयवियाए णयरीए णिग्गच्छद' વગેરે પાકને ઉલ્લેખ કરવામાં આવ્યું છે. એટલે કે તે ચિત્ર સારથિ જેમ તા. બિકા નગરીથી નીકળે છે, તે પ્રમાણે જ થાવત્ મુકામ કરતે તે કુણાલા જનપદના એકદમ મધ્યમાં પસાર થઈને જયાં કેકર્યાદ્ધમાં શ્વેતાંબિકા નગરી હતી અને તેમાં पा यां मृगवन नामे धान हेतु त्यां मा०या. (उज्जाणपालए सहावेइ) त्यां भावाने तेथे धान पालने मोडा०यो. (सावित्ता एवं क्यासी) मापाने आ प्रभारी ४ . (जया ण देवाणुप्पिया! पासावचिज्जे केसी नाम कुमारसमणे શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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