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________________ ६८ राजनीयसूत्रे रिहितः, अल्प महार्घाभरणालङ्कृतशरीरो यत्रैव चातुर्घण्टो अश्वरथस्तत्रैव उपा गच्छति, उपागत्य चातुर्घण्टम् अश्वरथं दुरोहति, सकोरण्टमाल्यदाम्ना छत्रेण त्रियमाणेन महाभट - चटकरवृन्दपरिक्षिप्तः श्रावस्तीनगर्याः मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रव कोष्टकं चैत्य यत्रैव केशिकुमारश्रमणस्तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य केशिकुमारश्रमण त्रिकृत्वः आदक्षिणपदक्षिणं करोति, आदि को अन्न का भाग दिया एवं दुःस्वप्न को विनाश करने के लिये कौतुक, मंगलरूप प्रायश्चित्त किया, (सुद्धपावेसाई मंगलाइ बत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्याभरणालकियसरीरे जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ) बाद में उसने शुद्ध, परिषदा में प्रवेशयोग्य, मांगलिक, वस्त्रों को अच्छी तरह से पहिरा एवं विशिष्ट कीमतवाले तथा अल्प वजनवाले ऐसे आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किया. ( जेणेत्र चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता चाउग्धटं आसरह दुरुह ) बाद में वह जहां चारघंटों वाला अश्वरथ खडा था वहां पर आया - वहां आकर वह उस चातुर्घट अश्व रथ पर बैठ गया (सकोरिंटमल्लदामेण छत्तेण धरिज्जमाणेणं महया भउचडगर विंदपरिक्खित्ते सावत्थी मज्झमज्झणं निग्गच्छ३) छत्रधारण करने वालेने उसके ऊपर कोरंटपुष्पों की मालाओं से सुशोभित छत्र तान दिया, विशाल भटों का समूह उसके आसपास आकर खडा हो गया इस प्रकार होकर फिर वह श्रावस्ती नगरी के बीचों बीच से होता हुआ निकला ( नग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए पावेसाई' 'गलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरी रे चाउटे आसरहे तेणेव उवागच्छड़) त्यारबाट तेथे सारी रीते शुद्ध, मुनिपरिષદામાં પ્રવેશ ચાગ્ય, માંગલિક વસ્ત્રો ધારણ કર્યાં. તથા બહુ કંમતી અને અલ્પलारवाजा आभूषणे। पहेरीने पोताना शरीरने खसंत यु. ( जेणेव चाउरघ दे आसरहे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता चाउरघंट आसरह दुरुह ) ત્યાર બાદ જ્યાં ચાર ઘટાવાળા અધરથ હતા ત્યાં ગયા. ત્યાં જઇને તે ચાતુ ટ २थ पर सवार थयेो. (सकोरिंटमल्लदा मेणं छत्तेण धरिज्जमाणेण महया भड चडगरविंद परिविखत्ते सावत्थीए नयरोए मज्झ मज्झेण निग्गच्छ) ७२ ધારણ કરનારાએ તેમના ઉપર કારટ પુષ્પોની માળાઆથી સુશેાભિત છત્ર તાણ્યું વિશાળ ભટોના સમૂહા આવીને તેની આસપાસ ચામેર વિંટળાઇ ગયા. આ પ્રમાણે ते श्रावस्तीनी नगरीनी वस्थे थाने नीयो. (निगच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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