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________________ ५९८ ___ राजप्रश्नीयसूत्रे पितहस्तिगुलगुलायतरथधनधनायितं कुर्वन्ति, अप्येकके देवा उच्छलन्ति, अप्येकके देवाः प्रोच्छलन्ति, अप्येक के देवा उत्कृष्टिको कुर्वन्ति, अप्येकके देवा उच्छलन्ति, प्रोच्छलन्ति, अप्येकके देवास्त्रीण्यपि अप्येकके देवा अवपतन्ति. अप्येकके देवा उत्पतन्ति अप्येकके देवाः परिपतन्ति, अप्येकके देवास्त्रीण्यपि, अप्येकके देवाः सिंहनादं कुर्वन्ति, अप्येकके देवा दर्दरकं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः भूमिचपेटां ददति अप्येकके उच्चारण किया ( अप्पेगइया देवा हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयं-रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा उच्छलेंति, अप्पेगइया देवा पोच्छले ति, अप्पेगइया को हाथी के गुलगुल जैसे शब्दको एवं रथ के धन धन जैसे शब्द को किया. कितनेक देव ऊपर की और उछले. कितनेक देव उनसे भी अधिक ऊपर की और उछले, कितनेक देवोंने हर्षध्वनि की (अप्पेगइया देवा उच्छलेति,, पोच्छौंति अप्पेगइया देवा तिन्नि वि अप्पेगड्या देवा ओवयंति) कितनेक देव उछले भी और अधिक भी उछले. कितनेक देवोने उछले तिरछे गये और फिर नीचे आये इस प्रकार तीनों कार्य उन्होंने किये. तथा कितनेक देव सिर्फ उछले ही (अप्पेगइया देवा परिवयंति) कितनेक देव ऊपर से नीचे ही आये (अप्पेगइया देवा तिन्नि वि) कितनेक देव ऊपर से नीचे आये, नीचे से ऊपर गये और फिर तिरछे भी गये. इस प्रकार से तीनों भी काम उन्होंने किये (अप्पेगइया देवा सीहनायं ४यु". (अप्पेगइया देवा हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरह घणघणाइयं करेति, अप्पेगइया देवा उच्छले ति, अप्पेगइया देवा पोच्छलेति, अप्पेगइया देवा उक्किट्टियं करे ति) કેટલાક દેએ એકી સાથે યહેષિત જેવા શબ્દનું, હાથીના “ગુલગુલ” જેવા શબ્દનું અને રથના “ઘનઘન” જેવા શબ્દનું ઉચ્ચારણ કર્યું. કેટલાક દે ઉપર ઉછળ્યા, કેટલાક દેવો તેમના કરતાં પણ વધારે ઉપર ઉછળ્યા, કેટલાક દે એ सपना ४ (अप्पेगइया देवा उच्छले ति, पोच्छले ति, अप्पेगइया देवा तिन्नि वि, अप्पेगइया देवा ओवयंति) मा हे या मने २१ तना रतi વધારે ઉછળ્યા કેટલાક દે ઉછળીને ત્રાંસા ઉપર ગયા અને ફરી નીચે આવ્યા આ પ્રમાણે ત્રણે કાર્યો તેમણે કર્યા. એમાંથી કેટલાક દે તો ફક્ત ઉછળ્યા જ (अप्पेगइया देवा परिवयंति) 321 । ७५२थी नीय माव्या. ( अप्पेगइया देवा तिन्नि वि) ३८६४४ वे! ७५२थी नीये माव्या, नायथी ७५२ गया मने पछी असा ५९॥ गया. मा प्रभारी वा भारी ४ा. (अप्पेगइया देवा सीहनायं करेंति) तम टमा वामे सिहानायी . (अप्पगइया देवा दद्दरयं कर'ति) શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર: ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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