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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे उपदर्शयन्ति, एवम् अप्येकके देवा अश्चितं नाटयविधिम् उपदर्शयन्ति, अप्येकके देवा आरभटं भसोलम् आरभटभसोलम् उत्पातनिपातप्रवृतं संकुचितप्रसारितं रितारितं भ्रान्तसंभ्रान्तनाम दिव्यं नाटयविधिम् उपदर्शयन्ति अध्येकके देवाश्चतुर्विधम् अभिनयम् अभिनयन्ति, तद्यथा-दार्टान्तिकं प्रात्यन्तिकं सामन्तोपनिपातिकं लोकान्तमध्यावसानिकम् , अप्येकके देवा वुन्कुर्वन्ति, उपदसेंति) कितनेक देवोंने द्रुतविलम्बित नाट्यविधि को दिखलाया (एवं अप्पेगइया देवा अचियं नट्टविहिं उवदसेंति) कितनेक देवोने अंचितनाटयविधि को दिखलाया अपेगइया देवा आरभडं, भसोलं, आरभडभसोलं उप्पायनिवायवत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतणाम दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेति) कितनेक देवोंने आरभट नाटयविधि को. कितनेक देवोंने भसोल नाटयविधि को, किननेल देवो आरभटभसोल दोनों प्रकारकी नाटयविधि को, कितनेक देवोने उत्पातनिपातप्रवृत्तनाटयविधि को, कितनेक देवोंने संकुचितप्रसारितनाटयविधि को, कितनेक देवोंने रितारितनाटयविधिको, एवं कितनेक देवोंने भ्रान्त संभ्रान्त नामक दिव्य नाटयविधि को दिखलाया (अप्पेगइया देवा चउचिहं अभिणय अभिणयंति, तं जहा-दिट्ठतियं, पाडंतियं, सामंतोवणिवाइय, लोग अंतोमज्झावसाणियं, अप्पेगइया देवा बुक्काति) कितनेक देवोने चार प्रकारके अभिनय का प्रदर्शन किया चार प्रकारके अभिनय इस प्रकार से हैं-दार्टान्तिक, प्रात्यान्तिक, सामन्तोपनिपातिक और लोका मित नाटयविधिनु प्रशन यु: (अप्पेगइया देवा दुयविलंबियं णट्टविहि उवदंसेंति) 32सा हेवाये द्रुतविलम्मितनाटयविधि मतावी. (एवं अप्पेगइया देवा अंचियनट्टविहि उवदंसेंति) मा वामे मयितनाटय विधिनु राशन :यु (अप्पेगइया देवा आरभडं, भसोलं, आरभडभसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंत. संभंताणं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति) मा वामे मारमट नाटयविधिनु टमा દેવોએ ભસોલ નાટયવિધિનું, કેટલાક દેએ આરભટ ભોલ બંને જાતની નાટયવિધિનું કેટલાક દેએ ઉત્પાતનિપાત પ્રવૃત્ત નાટયવિધિનું કેટલાક દેએ સંકુચિત પ્રસારિત નાટયવિધિનું કેટલાક દેવોએ રિતરિત નાટયવિધિનું અને टमा वामे प्रांतस ब्रांत नाम हिय नाटयविधिनु प्रशन यु":( अप्पेगइया देवा चउन्विहं अभिणय अभिणयंति, त जहा-दिलृत्तियं पाडंतियं सामंतोवणिवाइय लाग अंतोमज्झावसाणियं, अप्पेगइया देवा बुक्कारे ति) टस हेवा ॥२ ५४ारना અભિનયનું પ્રદર્શન કર્યું, દઈન્તિક, પ્રત્યે તિક, સામંત પનિપાતિક અને શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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