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________________ ४४२ राजप्रश्नीयसूत्रे तेषु खलु जातिमण्डपकेषु यावत् मालुकामण्डपकेषु बहवः पृथिवीशिलापट्टका हंसासनसंस्थिताः यावद् दिक्सौवस्तिकासनसंस्थिताः अन्ये च बहवे वरशयनासनविशिष्टसंस्थानसंस्थिता पृथिवीशिलापट्टकाः प्रज्ञप्ताः, श्रमणाऽऽयुष्मन् ! आजिनकरुतबूरनवनीततूलस्पर्शाः सर्वरत्नमयाः अच्छाः यावत् मंडपक (मालुयामंडवगा) और अनेक मालुकामंडपक हैं ( सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ) ये सब मंडपक सर्वथा रत्नमय है, अच्छ है यावत् प्रतिरूप हैं। (तेसु णं जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडवेसु बहवे पुढविसिलापट्टगा हंसासण संठिया जाव दिसा सोवत्थियासणसंठिया ) इन जातिमंडपों से लेकर मालुकामंडपों तक के समस्त मंडपों में पृथिवीशिलापट्टक कहे गये है ये पृथिवीशिलापट्टक कोई हंसासन के आकार जैसे आकारवाले हैं यावत् कोई दिशासौवस्तिक आसन के आकार जैसे आकारखाले हैं । (अण्णे य बहवे वरसयणासणविसिट्ट संठाणसंठिया ) तथा इस पृथिवी शिलापट्टक से भिन्न जो और कितनेक पृथिवीशिलापट्टक हैं वे आकार प्रकार से विलक्षण ऐसे उत्तम शयन और आसन के जैसे आकारवाले हैं । ( पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता) इस प्रकार से वहां पृथिवीशिलापट्टक कहे हैं ( समणाउसो) यह पद संबोधन है (आईणगरूयबूरणवणीयतुलफासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ) इन पृथिवीशिलापट्टकों का स्पर्श अजिन-चर्मनिर्मित वस्त्र के स्पर्श जैसा है, रुई के जैसा स्पर्श है, बूर-वनस्पति-विशेष के णामया अच्छा जाव पडिरूवा ) 24 स भ७५७। सवथा २(नमय छ, २७ छे-यावत् प्रति३५ छ. (तेसु णं जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडवएसु बहवे पुढविसिलापट्टगा हौंसासणसठिया जाव दिसासोवत्थियासणसगिया ) मा ततना माथी भासन માલુકા મંડપ સુધીના બધા મંડપમાં પૃથિવીશિલાપટ્ટકો છે, આ પૃથિવી શિલાપકેમાંથી કઈ હંસાસનના આકાર જેવા છે યાવતુ કોઈ દિશા સૌવસ્તિકાસનના मा२ २१ मा ४२ वा छे. ( अण्णे य बहवे वरसयणासणविसिट्टसंठाणसंठिया તેમજ પૃથિવી શિલાપટ્ટકથી ભિન્ન જે કેટલાક બીજા પૃથિવીશિલાકો છે. તે આકાર પ્રકારથી વિલક્ષણ તેમજ ઉત્તમ શયન અને આસનના જેવા આકારવાળા છે. (पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता ) मा प्रमाणे त्यां पृथिवी शिलापट्ट । वाम माया छे. (समणाउसो) ले आयुष्मन् ! श्रमण ! (आईणगरुयबूरणबणीयतूलफासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा) मा पृथिवीशलापट्टीन २५श मानिन-यम -થી નિર્મિત થયેલા વસ્ત્રના સ્પર્શ જે છે. રૂના સ્પર્શ જેવો છે, બૂર-વનસ્પતિ શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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