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॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालप्रतिविरचितया सुबोधिन्याख्यया व्याख्यया
समलकृतम् श्री राजप्रश्नीयसूत्रम्
मङ्गलम् - (मालिनी छन्दः ) गुणनिकरनिधानं कल्पवृक्षोपमानं,
नमितसुरसमाजं सिद्धिसौधाधिराजम् । कलिकलिलविनाशं भव्यबोधप्रकाश,
शिवसुखदमुनीन्द्रं नौमि वीर जिनेन्द्रम् ॥ १ ॥ राजप्रश्नीयसूत्र का हिन्दी अनुवाद
मंगलाचरण 'गुणनिकरनिधानं' इत्यादि।
अर्थ-(गुणनिकरनिधानम् ) कर्मोंके सर्वथा क्षय होने से उत्पन्न केवलज्ञानादि अनेकगुणों के भंडार. (कल्पवृक्षोपमानम् ) भव्य जीवों के लिये सकलसिद्धियों के दाता होने से कल्पवृक्षतुल्य, (नमितसुरसमाजम् ) भक्ति के वशसे नमित सूरसमाजवाले, (सिद्विसौधाधिराजम् ) सिद्धिरूपी महल के सर्वाधिकारी, (कलिकलिलविनाशम्) कलिकालके पापोंके विनाशक (भव्यबोधप्रकाशम् ) भव्यजीवोंके लिये निर्मल बोधरूप प्रकाशके कर्ता, (शिवसुखदमुनिन्द्रम् ) शिवसुखके दाता तथा मुनियों में इन्द्रस्वरूप ऐसे (जिनेन्द्रं वीरं नौमि) जिनेन्द्र वीर भगवान्को मैं नमस्कार करता हूं।
મંગલાચરણને ગુજરાતી-અનુવાદ. 'गुणनिकरनिधान' इत्यादि।
म -(गुणनिकरनिधानम् ) ४ीन सय क्षयथी उत्पन्न वज्ञान पोरे ५। गुणाना २, (कल्पवृक्षोपमानम् ) सव्य लवाने माटे सस सिद्धिमान मापना। वाथी ४६५वृक्ष सेवा, (नमितसुरसमाजम् ) मतिने सीधे
वो भनी समक्ष श्रद्धावनत छ, (सिद्धिसौधाधिराजम् ) सिद्धि३५. भलेना सर्वाधिरी, (कलिकलिलविनाशम् ) सितन पायाने नष्ट ४२नारा, (भव्यबोधप्रकाशम् ) सव्य वान भाटे निजमाध३५ प्रश ४२ना। (शिवसुखदमुनीन्द्रम् ) ४८यारी सुप मापना। तेम भुनियामा छन्द्र२१३५ मेवा (जिनेन्द्र वीरं नौमि ) जिनेन्द्रवी२ मावानने ई नमः४२ ४३ .
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્રઃ ૦૧