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पीयूsfर्षणी टीका. सू. ४ वृक्षवर्णनम्.
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णिचं थवइया णिच्चं गुलइया णिच्चं गोच्छिया णिच्चं जमलिया णिचं जुवलिया णिच्चं विणमिया णिच्चं पणमिया णिचं कुसुमिय
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प्रतिबन्धितकुसुमाः । ' णिच्चं मऊरिया ' नित्यं मयूरिताः - मयूराः सन्त्येषामिति मयूरिताः नित्यं मयूरयुक्ता इत्यर्थः । ' णिचं पल्लविया ' नित्यं पल्लविताः - सर्वदा पल्लवसम्पन्नाः । 'णिचं थवइया ' नित्यं स्तबकिताः - नित्यं स्तबकवन्तः, गुच्छवन्त इत्यर्थः । “णिचं " नित्यं गुल्मिताः गुलइया जातियूथिकान मल्लिकादिलतावन्तः, चिं गोच्छिया ' नित्यं गुच्छिताः सदापुष्पगुच्छयुक्ताः । ' णिचं जमलिया ' नित्यं तया स्थिताः-अथवा यमलाः युग्मतया जाताः, ते सन्ति येषां ते यमलिताः । ' णिच्चं जुलिया ' नित्यं युगलिता - युगलतया स्थिताः । 'गिच्चं विणमिया' नित्यं विनमिताःफलपुष्पादिमारेण नताः । ' गिंच पगमिया' नित्यं प्रणमिताः केचित् प्रकर्षेण नम्रीभूताः ।
यमलिताः समपंक्ति
[[णि मऊरिया ] सर्वदा इन वृक्षों पर मोर रहते थे । ( णिचं पल्लविया) ये वृक्ष नित्यपल्लवित रहते थे, अकाल में पतझड इनमें नहीं होता था । ( णिचं थवइया ) गुच्छों से ये हमेशा अन्वित बने हुए रहते थे [ णिच्चं गुलइया ] इनपर सदा नवमल्लिका आदि लतारं लिपटी रहती थीं । ' णिचं गोच्छिया ' ये हमेशां फूलों और फलों के गुच्छों से युक्त रहते थे । ' णिचं जमलिया णिचं जुवलिया ' ये जितने भी वृक्ष यहां पर थे वे सब जोडे सहित एक सी कतार में आजू-बाजू खडे हुए थे । 'णिचं विणमिया ' ऐसा कोई सा भी समय नहीं था कि जब ये फल एवं पुष्पादिक के भार से झुके न रहते हो । ' णिचं पणमिया ' कोई २ वृक्ष तो ऐसे भी थे जो पुष्पादिकों के भार से बिलकुल जमीन तक भी झुके हुए थे । [ णिचं-कुस
वृक्षों पर भोर रहेता हुता ( णिच्चं पल्लविया) भे वृक्ष हमेशां पावित रह्या ४२तां डुतां. हुआ|जमां । तेमनां पान भरता नहोतां ( णिच्चं थवइया ) गुरुछोथी ते डुमेश सलर रहेतां तां ( णिच्चं गुलइया ) तेभना पर सहा नवभब्सिा आदि बताओ (वेसेो) वीटजायेसी रहेती हुती. ( णिच्चं गोच्छिया ) ते हमेशां से मने इणोना गुरछाथी युक्त रहेता हुता. ( णिच्च जमलिया णिच्च जुवलिया ) मे भेटतां वृक्षों सहीं इतां ते मघां लेडे भेडे खेड ४ द्वारमा भन्नुखान्नुभां लां तां. ( णिच्चं विणमिया ) मेव। अध्यषु सभय નહતા કે જ્યારે તેઓ લ તેમજ પુષ્પાદિકના ભારથી ઝુકેલાં ન રહેતાં હાય. ( णिच्चं पणमिया ) ( अ वृक्ष तो मेवां यहुतां ने पुष्याद्विना लारथी मिसडुस ४मीन सुधी नभी गयेसां तां ( णिच्चं - कुसमिय-मऊरिय