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औपपातिकसूत्रे मूलम्-से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिखसंति ?। गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भदन्त ! 'ईसीपब्भाराए' ईषत्प्राग्भारायाः-ईषत् अल्पः प्राग्भारो महत्त्वं यस्याः सा तथा तस्याः-सिद्धशिलायाः 'पुढवीए' पृथिव्या 'अहे' अधः 'सिद्धा परिवसंति ?' सिद्धाः परिवसन्ति किम् ?, भगवानाह-'णो इणद्वे समडे' नाऽयमर्थः समर्थः । सू० १०१ ।।
टीका--'से कहिं' इत्यादि । गौतमःपृच्छति-'से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ? अथ कस्मिन् पुनः खलु भदन्त ! सिद्धाः परिवसन्ति ? 'खाई' इतिदेशीयः शब्दः पुनरर्थवाचकः । भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए' 'अत्थि णं भंते !' इत्यादि ।
प्रश्न-(भंते !) हे भदंत ! (अस्थि णं ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति?) क्या सिद्ध भगवान् ईषत्प्राग्भारा-सिद्धशिला के नीचे रहते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! (णो इणद्वे समढें) यह अर्थ समर्थ नहीं है ॥ सू० १०१॥ 'से कहि खाइ णं इत्यादि। - गौतम ने पुनः प्रभु से पूछा-(भंते!) हे भदंत ! (से कहिं खाइ णं सिद्धा परिवसंति) सिद्ध लोग इन पूर्वोक्त स्थानों में नहीं रहते तो फिर वे कहाँ रहते हैं ? तब प्रभु ने कहा-(गोयमा!) हे गौतम । (इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए) इस रत्नप्रभापृथिवी १-'खाइ' यह देशीय शब्द है, यह 'पुनः' शब्द के अर्थ का द्योतक है। ‘णं' शब्द
वाक्यालंकार में प्रयुक्त हुआ है। 'अस्थि णं भंते !' त्यादि.
प्रश्न-(भंते !) महत! (अत्थि णं ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ) शुसिद्ध भगवान् षत्प्राउभारा-सिद्धशिवानी नीये २९ छ ? उत्तर- गौतम ! (णो इणठे समठे ) मा म समर्थ नथी. (सू० १०१)
'से कहिं खाइ गं' त्याहि.
गौतमे शने प्रभुने पूछ्यु-(भंते !) हे महत! ( से कहिं खाइ णं सिद्धा परिवसंति ) सिद्ध a४ मा पूर्वरित स्थानोमा नथी २७ तो पछी तमा ४यां २९ छ ? त्यारे प्रभुये ४ह्यु-(गोयमा !) गौतम! ( इमीसे १-खाइ' से शह देश ४ छ, Avg 'पुनः' २०४॥ मना सूय४
छ. 'णं' श६ वाज्यालामा छ