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________________ पोयूषवर्षिणो टोका सू. ५७ अगारधर्मनिरूपणम् ४८३ माउसो! अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते। एयस्स धम्मस सिक्खाए उवहिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए हवइ ॥ सू० ५७॥ कर्मधारये-अपश्चिममारणान्तिकसंलेखना, नस्याः जूषणा=सेवना-मरणकाले संलेखनानाम्ना तपसा शरीरस्य कषायादीनाञ्च कृशीकरणं, तस्या आराधना=निरवच्छिन्नतया संपादनम् ॥ १२ ॥ 'अयमाउसो' अयमायुष्मन् ! 'अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते' अगारसामयिको धर्मः प्रज्ञप्तः 'एयरस धम्मरस सिक्खाए उवद्विए समणोवासए वा समणोफिर भी यहां जो उसे अपश्चिम कहा है वह अमंगलपरिहार के निमित्त से जानना चाहिये । क्यों कि “ अन्तक्रियाधिकरणं तपःफलं सकलदर्शिनः स्तुवते" तप का फल संलेखनापूर्वक प्राणों का विसर्जन करना प्रभुने बतलाया है, अतः यदि यह अन्तिम समय आचरित नहीं होती है तो जीवनभर की गई व्रताराधना तपस्या आदि एक प्रकार से निष्फल ही समझना चाहिये। अतः इस अपेक्षा से यह अपश्चिम-सर्वोत्कृष्ट कही गई है। यह संलेखना (मारणान्तिकी) मरण के समय धारण की जाती है। काय और कषाय आदि जिसके द्वारा अथवा जिसमें कृश किये जाते हैं उसका नाम संलेखना है। यह संलेखना भी एक तप-विशेष है। इसे प्रेम से धारण करना चाहिये इस अर्थ को धोतित करने के लिये ही " जूषणा" यह पद दिया गया है। (अयमाउसो!) इस प्रकार हे आयुष्मन् ! यह ( अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते) गृहस्थ का धर्म सिद्धान्त में कहा गया है। (एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासर वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए छ. ते यस परिहारनु निमित्त त नये. म "अन्तक्रियाधिकरणं तपःफलं सकलदर्शिनः स्तुवते” तनुस सलेमना-पूर्व प्राणोनु विसन કરવું. એમ પ્રભુએ બતાવ્યું છે. આથી જે આ અંતિમ સમયે આચરવામાં નથી આવતી તે જીવનભર કરેલી પ્રત–આરાધના તપસ્યા આદિ એક પ્રકારે નિષ્ફલ જ માનવી જોઈએ. આમ આની અપેક્ષાએ આ અપશ્ચિમ-સર્વોત્કૃષ્ટ रासी छ. 24 सपना (मारणान्तिकी) भ२४ना समये धारण ४२राय छे. કાય અને કષાય આદિ જેના દ્વારા અથવા જેમાં કૃશ કરાય છે તેનું નામ સંલેખના છે. આ સંલેખના પણ એક તપવિશેષ છે. તેને પ્રેમથી ધારણ ४२वी नेस. मा मथ ने धोतित (पाशित) ४२वा भाटे ४ "जूषणा” से ५६ पापे छ. (अयमाउसो) २९ मायुष्मन् ! २ (अगारसामा
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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