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________________ ४६२ ओपपातिकसूत्रे उए सल्लकत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिज्जाणमग्गे अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इहट्ठिया जीवा सिझंति बुझंति भावशल्यानि विच्छेदमायान्तीति। ‘सिद्धिमग्गे' सिद्धिमार्गः-सिद्धिः कृतकृत्यता-तस्या मार्गः=उपायः; 'मुत्तिमग्गे' मुक्तिमार्गः सकलकर्मवियोगस्य हेतुः, ‘णियाणमग्गे' निर्वाणमार्गः-निर्वागस्य सकलकर्मक्षयजन्यस्य पारमार्थिकसुखस्य मार्गः, ‘णिजाणमग्गे' निर्या मार्गः-निर्याणम् अपुनरावृत्त्या संसारात प्रस्थानं तस्य मार्गः, 'अवितहं' अवितथम्-वितथं मिथ्या तद्विपरीतं–त्रिकालाबाधितमित्यर्थः । 'अविसंधि' अविसन्धि= अव्यवच्छिन्नं-न कदाचिदपि विच्छेदमुपगतम् । 'सव्वदुक्त्वप्पहीणमग्गे' सर्वदुःखप्रहीणमार्गः-सर्वाणिजन्ममरणादीनि दुःखानि प्रहीगानि यत्र स सर्वदुःखाहीणो मोक्षस्तस्य कर्तन ( छेदन ) इसी आगम से होता है। (सिद्विमग्गे ) यह आगम ही सिद्धि-कृतकृत्यता का एक मार्ग है। (मुत्तिमग्गे ) समस्त कर्मों के क्षय का यही एक उपाय है। (गिवागमग्गे ) समस्त कर्मों के क्षय से उद्भूत पारमार्थिक सुख का यही एक रास्ता है। (णिज्जाणमग्गे) लंसार में जीव का पुनः आगमन न हो इस रूप से जो जीव का संसार से प्रस्थान होता है उसका प्रधान कारण एक यही आगम है। (अवितहं ) यह आगम त्रिकाल में भी कुतर्कों द्वारा बाधित नहीं है। (अविसंधि ) महाविदेह क्षेत्र की अपेक्षा से-न इसका कभी विच्छेद होता है, और न कभी विच्छेद होगा। (सबदुक्खप्पहीणमग्गे ) समस्त दुःखों का जिसमें सर्वथा अभाव है ऐसे मोक्ष का यही एक उत्तम मार्ग है। जिस लिये यह प्रभु द्वारा प्रतिपादित आगम पूर्वोक्त प्रकार से इन सद्गुगों माथा यावती नयी. (सल्लकत्तणे) भाया, मिथ्यात्व तम निदान शल्यानां ४तन (छन) २॥ मामथी थाय छे. (सिद्धिमगगे) 20 सालभर सिद्धि-कृतकृत्यतानी से भाग छ. (मुत्तिमग्गे) समस्त र्भाना क्षयने। मासे पाय छ. (णिव्वाणमग्गे) समस्त ४ ना क्षयथी पन्न थता पारमाथि सुमने। मा४ मे २२तो छ. (णिज्जाणमग्गे) संसारमा पर्नु पुनः आगमन नथाय એ રૂપથી જે જીવનું સંસારથી પ્રસ્થાન થાય છે તેનું પ્રધાન કારણ એક मा मागम छे. (अवितह) मा मागमा भा ५५] त? द्वारा मयत नथी. (अविसंधि) महाविड क्षेत्रनी अपेक्षाथी नथी माना ही विछे थयो, नथा विछे थातो अने नथी ४ी विछ थवानी. ( सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे) સમસ્ત દુઃખને જેમાં અભાવ છે એવા મોક્ષને આ એક ઉત્તમ માર્ગ છે. જેથી પ્રભુ દ્વારા પ્રતિપાદન કરેલું આ આગમ પૂર્વોક્ત એવાં સદ્દગુણોથી યુક્ત
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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