SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 499
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ औपपातिक सू :-अन्तः रिसवर – कंचुइज्ज - महत्तर - बंद - परिक्खित्ताओ अंतेउराओ णिग्गच्छ न्तिणिभ्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणारं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई दुरूचेष्टितम्, चिन्तितं=मनोगतं, प्रार्थितम् = अभिलपितं तेषां विज्ञाभिः, 'सदेस - णेवत्थ-‍ -ग्गहिय - वेसाहिं' स्वदेश- नेपथ्य – गृहीत - वेषाभिः - स्वदेशस्य यानि नेपथ्यानि – वस्त्रभूषणधारणरीतयः, तैर्गृहीता वेषा याभिः तास्तथा ताभिः, 'चेडिया - चक्कवाल - वरिसवर-कंचुइज्ज - महत्तर - वंद - परिक्खित्ताओ' चेटिका - चक्रवाल - वर्षवर - कञ्चुकीय - महत्तर - वृन्दपरिक्षिप्ताः--चेटिकानां–दासीनां चक्रवालं मण्डलम्, वर्षवराः - क्लीबाः, कञ्चुकीयाः = अ पुरबहिः प्रदेशरक्षकाः, तदन्ये ये महत्तराः = प्रामाणिका अन्तःपुररक्षकाः, तेषां यद् वृन्दं तेन परिक्षिप्ताः=परिवेष्टिता यास्तास्तथा सुभद्राप्रमुखा देव्यो = राश्यः 'अंतेउराओ णिग्गच्छंति' अन्तःपुरात्—स्त्रीगृहान्निर्गच्छन्ति, 'णिग्गच्छित्ता' निर्गत्य, 'जेणेव पाडियकजाणाई' यत्रैव प्रत्येकयानानि=पृथक् २ यानानि सन्ति, तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य 'पाडियक्क - पाडि - प्रार्थित को अर्थात्–अभिलषित को जानने में विज्ञ थीं, (सदेस - णेवत्थ-ग्गहिय- वेसाहिं) अपने २ देश की रीति के अनुसार वेषभूषा धारण की हुई थीं, ऐसी इन विदेशी दासियों से, तथा-(वेडिया-चक्कवाल - वरिसवर-कंचुइज्ज - महत्तर - वंद - परिक्खित्ताओ ) विदेशी दासियों से भिन्न दासियों के समूह से, वर्षवरों से नपुंसकों से, कंचुकियों से तथा और भी अन्य प्रामाणिक अन्तःपुर रक्षकों से परिक्षिप्त - घिरी हुईं होकर (अंतेउराओ णिग्गच्छंति) अंतःपुर निकलीं, (णिग्गच्छित्ता) निकलकर ( जेणेव पाडियकजाणाई) जहां अपने २ योग्य अलग २ यान रखे हुए थे, (तेणेव उवागच्छंति) वहां पर पहुँची, ( उवागच्छित्ता पाडियकपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई दुरूहंति) पहुँच कर उन पृथक् २ प्रार्थितने भेटले अभिलाषाने लगी सेवामां निपुणु हुती, (सदेसणेवत्थगहियवेसाहिं) नेभेोभे पोतपोताना देशनी रीत प्रमाणे वेष धारण ४रेखे। हुता ओवी या विदेशी हासीमोथी, तथा (चेडिया - चक्कवाल - वरिसवर-कंचुइज्ज - महउत्तर- वंद - परिक्खित्ताओ ) विदेशी हासीमोथी लुट्ठी हासीखोना समृहुथी, तथा વવર–નપુંસકાથી, કંચુકીએથી, તથા બીજા પણ પ્રામાણિક અંતઃપુરરક્ષठोथी परिक्षिप्त-वीटामेली मनीने (अंतेउराओ णिग्गच्छंति) अंतःपुरथी नीडजी, (णिग्गच्छित्ता) नीजीने (जेणेव पाडियक्कजाणाई ) नयां पोतपोताने योग्य हां हां यान (वाहनो) रामवामां भाव्यां तां ( तेणेव उवागच्छंति) त्यां यहींथी. ( उवागच्छित्ता पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई दुरू
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy