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औपपातिकसूत्रे एणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वर-तुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणवपडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुअंग-दुंदुहि-णिग्घोस-णाइय-रवेणं चंपाए णयरीए मज्झं-मज्झेणं णिग्गच्छइ ॥ सू० ५२ ॥ इडढीए' महत्या ऋद्धया 'महया जुईए' महत्या युत्या, 'महया बलेणं' महता बलेनविपुलसैन्येन, 'महया समुदएणं' महता समुदायेन समृहेन । 'महया वर-तुडियजमग-समग-पवाइएणं' महता वर-त्रुटित-यमकसमक-प्रवादितेन महताबृहता, वरत्रुटितानां = श्रेष्ठविविधवाद्यानां-यमकसमकं = युगपत्प्रवादितेन 'संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुअंग-दुंदुहि-णिग्योस-णाइय-रवेणं' शङ्खपणव–पटह-भेरी-झल्लरी-खरमुखी-हुडुक्क-मुरज-मृदङ्ग-दुन्दुभि-निर्घोष–नादित-रवेणशङ्खादिदुन्दुभ्यन्तानां वाद्यविशेषाणां निर्घोषस्य नादितरवेण=प्रतिध्वनिना चम्पाया नगर्या मध्यमध्येन ‘णिग्गच्छइ' निर्गच्छति ॥ सू. ५२॥ इड्ढीए) अपनी विशिष्ट ऋद्धि से, (महया जुईए) अपनी विशिष्ट द्युति से, (महया बलेणं) अपनी विशिष्ट सेना से (महया समुदएणं) अपने विशिष्ट परिजनों से (महया-वर-तुडियजमग-समग-पवाइएणं) एक ही साथ बजने वाले बाजों की मनोहर महाध्वनि से, तथा (संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक-मुरय-मुअंग-दुंदुहि-णिग्योसणाइय-रवेणं ) शंख, पणव, पटह, भेरी, झल्लरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज, मृदङ्ग एवं दुन्दुभि के निर्घोष की प्रतिध्वनि से शोभित होते हुए (चंपाए णयरीए मज्झंमज्जेणं णिग्गच्छइ) चम्पा नगरी के बीचो-बीच से होकर चले ॥ सू. ५२ ॥
सद्धि , (महया जुईए) पोतानी विशिष्ट धुति 43, (महया बलेणं) पातानी विशिष्ट सेना 43, (महया समुदएणं). पोताना विशिष्ट परिन 43, (महया वर-तुडिय-जमगसमग-पवाइएणं) मेसाथे मातi on ना भनोडर भड़ा
पनि वडे, तथा (संख-पणव-पडह-भेरी-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुअंग-दुंदुहिणिग्योस-णाइय-रवेणं) , ५१, ५८, लेरी, सारी, मरभुमी, हु, मु२०४, भृह, तम मिना निर्धाषनी प्रतिध्वनि शमिता (चंपाए णयरीए मज्झं-मज्झेणं णिग्गच्छइ) 0 नगीना पक्ष्या-१२न्य धने याल्या. (सू. ५२)