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औपपातिकसूत्रे
च्चा सायणया २, आयरियाणं अणच्चासायणया ३, एवं उवज्झायाणं ४, थेराणं ५, कुलस्स ६, गणस्स ७, संघस्स ८, किरयाणं ९, संभोगस्स १०, आभिणिबोहियणाणस्स ११, सुयणाणस्स अर्हद्भगवतामवर्णवादादिनिवारणम् |१| 'अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस अणच्चासायणया' अर्हत्प्रज्ञप्तस्य धर्मस्य अनत्याशातनता - सर्वज्ञकथितधर्मस्याऽवर्णवादादिनिवारणम् |२| 'आयरियाणं अणच्चा सायणया' आचार्याणामनत्याशातनता । ३ । एवम् - 'उवज्झायाणं' उपाध्यायानाम् ।४। ‘थेराणं’ स्थविरागाम् | ५ | 'कुलस्स' कुलस्य - एकाचार्यसन्ततिरूपस्य समानाssचारसाधुसमूहस्य । ६ । 'गगस्स' गगस्य - परस्परसापेक्षाऽनेककुलसाधुसमुदायस्य | ७| 'संघल्स' संघस्य-सम्यग्दर्शनादियुक्तसाधुसाध्वीश्रावकश्राविकारूपस्य | ८ | 'किरियाणं' क्रियाणाम् - ईर्यापथ्रिकादीनाम् ।९। ‘संभोगस्स' सम्भोगस्य - सम् = एकत्र भोगो = भोजनं- संभोगः - समानसामा - चारी तथा साधूनां परस्परमुपध्यादिदानग्रहणसंव्यवहार स्तस्य, एकसामाचारिकताया इत्यर्थः । १० । 'आभिणिataणाणस्स' आभिनिबोधिकज्ञानस्य | ११ | 'सुयणाणस्स ' श्रुतज्ञानस्य | १२ | ( अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणया ) अर्हत भगवान् द्वारा प्रज्ञप्त धर्मका अवर्णवाद आदि नहीं करना (२), (आयरियाणं अणच्चासायणया) आचार्य महाराज का अवर्णवाद नहीं करना (३), इसी तरह ( उवज्झायाणं ) उपाध्याय का ( ४ ), ( थेराणं ) स्थविरों का (५), (कुलस्स) एक आचार्य के सन्ततिरूप समान आचार वाले साधुओं के समूह का ( ६ ), ( गणस्स) परस्पर सापेक्ष अनेककुलवाले साधुसंप्रदाय का (७), (संघएस) सम्यग्दर्शन आदि से युक्त साधु, साध्वी, श्रावक श्राविकारूप संघ का (८), (किरियाणं) ईर्यापथिक आदि क्रियाओं का (९), (संभोगस्स) संभोग - एक सामाचारिकता का (१०), (आभिणिवोयिणाणस्स) आभिनिवोधिक ज्ञान का (११), (सुयणागस्स) श्रुतज्ञान का
भगवाननो अववाह न मोसवेो (१), (अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणया) हु लगवान द्वारा प्रज्ञप्त धर्मनी अववाह न गोसव (२), (आयरिया अणच्चासायणया) मान्यार्य महाराष्नो अणुवाहन मोसो (3), मे रीते ( उवज्झायाणं ) उपाध्यायोनो (४), (राणं) स्थविरोना (५), (कुलस्स) भेउ मायार्थना संततिय समान आथारवाजा साधुयाना समूहनो (१), ( गणस्स) परस्परसापेक्ष भने दुवाणा साधुस अहायनो (७), ( संघस्स) सभ्यग्दर्शन माहिथी युक्त साधु-साध्वी-श्राव:- श्रावि ३५ संघा (८), (किरियाणं) र्यापथि यहि डियागोनो (८), (संभोगस्स) सौंभोग - सामान्यारितानो (१०), (आभिणिबोहियणाणस्स) मलिनिमोधिठ ज्ञाननो (११), (सुयणाणस्स) श्रुतज्ञानना