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पोयूषवर्षिणी टीका सू. १९ कूणिकस्य तत्कालोषिताचरणम्
११३ मउड-कुंडल-हार-विरायंत-रइय-वच्छे पालंबपलंबमाण-घोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ,पञ्चोरुहित्तावेरुलिय-वरिट्ठ-रिट्ठपरिधृतः वक्षसि वक्षःस्थले यस्य स तथा, ततः पदद्वयस्य कर्मधारयः । 'पालंब पलंबमाण-घोलंत-भूसण-धरे, प्रालम्ब-प्रलम्बमान-घूर्णमान-भूषणधरः-प्रालम्बः-कण्ठाभरणविशेषः, स एव प्रलम्बमानं लम्बाकारं धूर्णमानं दोलायमानं भूषणं तस्य धरः-धारकः, एतादृशः ‘नरिंदे' नरेन्द्रः कूणिकनृपः ‘ससंभमं' ससम्भ्रमं-सादरं यथा स्यात् , ' तुरियं' त्वरितं-शीघ्रतया यथा स्यात् , 'चवलं' चपलं-चञ्चलतया यथा स्यात् तथा 'सीहासणाओ अब्भुट्टेइ' सिंहासानदभ्युत्तिष्ठतिअवतरति, ‘अब्भुद्वित्ता' अभ्युत्थाय-अवतीर्य 'पायपीढाओ पच्चोरुहइ' पादपीठात्प्रत्यवरोहति-अवतरति, प्रत्यवरुह्य-अवतीर्य पादपीठादधोऽवतीर्य 'पाउआओ ओमुअइ' पादुके अवमुञ्चति, कीदृशे पादुके ? इत्याह-' वेरुलिय' इत्यादि, ' वेरुलिय-वरिट्ठदोनों केयूर-बाजूबन्द, मुकुट, दोनों कुण्डल, एवं १८ लरका हार, जो वक्षस्थल में धारण किया हुआ था और जिसकी शोभा से वक्षःस्थल सुशोभित हो रहा था; ये सब के सब आभूषणादि कंपित हो उठे। (पलंब–पालंबमाण-घोलंत-भूसणधरे ) हर्ष-जनित कम्प से चलायमान उनका प्रलम्बमान कण्ठाभरण उनकी शोभा को बढा रहा था। बाद में ( ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे) राजा बडे ही संभ्रम से-आदरपूर्वक, अर्थात् एकदम जैसे बैठे थे वैसे ही; शीघ्र ही चंचल जैसा होकर (सीहासणाओ अब्भुटेइ) अपने सिंहासन से उठे, और (अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ ) उठ कर पादपीठ पर पैर रखकर नीचे उतरे, ( पच्चोरुहित्ता वेरू(બાજુબંધ), મુકટ, બન્ને કુંડલ તેમજ ૧૮ સરને હાર જે વક્ષસ્થળ ઉપર ધારણ કરવામાં આવ્યો હતો, અને જેની શેભાથી વક્ષઃસ્થલ સુશોભિત થઈ રહ્યું
तु, त तमामे तमाम माभूषण माहि हुसी रह्यो तi, ( पालंब-पलंबमाणघोलंत-भूसण-धरे ) उपथी उत्पन्न थdi uथी यसायमान थdi तना अामi પહેરેલા લાંબા લટકતા હાર તેની શોભામાં વધારે કરી રહ્યા હતા. પછી ( ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे) २ घणा संभ्रमथा--माथी अर्थात् सम॥ मेसा त तपास Guque यया थने (सीहासणाओ अब्भुट्ठइ) पोताना सिहासन ५२थी ४या, मने (अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ ) ही पापी ५२ ५॥ राभान नीथे जर्या, (पच्चोरुहित्ता-वेरुलिय-वरिठ्ठ-रिव