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कर वे देश, समाज सभीका कल्याण करते थे, और अपने इहलोक और परलोक की सिद्धिको भी प्राप्त करते थे ।
द्वितीय भाग में भगवान् गौतमस्वामी और भगवान् महावीरका प्रश्नोत्तरयह ज्ञात होता है कि किन कर्मों देवलोकगामी होते हैं, और कैसे
रूप संवाद है। इस संवाद के अध्ययन से से जीव नरकगामी होते हैं, किन कर्मों से सिद्धिगामी होते हैं ।
इस प्रकार यह सूत्र परमोपादेय है । वर्णन की दृष्टि से यह तो समस्त जैनागमों का वर्णनकोश ही है । क्यों कि अन्य आगमों में जहाँ कहीं भी नगर, चैत्य, राजा, रानी आदिका वर्णन आता है, वहाँ संक्षेप में ही आता है, और ast ' औपपातिक सूत्र' से ही वर्णनात्मक सन्दर्भ लेनेके लिये निर्देश किया जाता है । इस दृष्टि से भी इसकी अत्यन्त उपादेयता है । सभी जीव सर्वदा यही चाहते हैं कि 'सर्वदा मे सुखं भूयाद् दुःखं माऽस्तु कदा चन' अर्थात् मुझे सर्वदा सुख मिले, दुःख कभी भी नहीं मिले। सुख अहिंसादि सत्कर्म से या आत्यन्तिक कर्मविमोक्ष से ही मिलता है, और दुःख हिंसादि असत्कर्मों से मिलता है । नरकादिक दुःख जिन कर्मों से मिलते हैं तथा देवलोकांदिक सुख जिन कर्मों से मिलते हैं उन कर्मों का परिज्ञान इस शास्त्र के अध्ययन से होता है । ज्ञपरिज्ञा से सुखदायी और दुःखदायी कर्मों को जानकर जीव प्रत्याख्यानपरिज्ञा से दुःखदायी कर्मों को छोड़कर, आसेवनपरिज्ञा से सुखदायी कर्मों का आसेवन करता है, और क्रमिक आत्मविशुद्धि से सिद्धिगामी होता है । इस दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता अद्वितीय ही है ।
ऐसे अनुपम इस सूत्र की सर्वजनगस्य व्याख्या की नितान्त आवश्यकता थी । इस अभावको दूर करने के लिये पूज्य श्री १००८ घासीलालाजी म. सा. ने इस सूत्र की 'पीयूषवर्षिणी' नामक सरल संस्कृत व्याख्या रची हैं। जो साधारण संस्कृतज्ञों के लिये भी सुबोध है । हिन्दी और गुर्जर - भाषी जनताको इस सूत्रका अभिप्राय सरलतया ज्ञात हो, इसलिये इसका हिन्दी - गुर्जर अनुवाद भी किया गया है । इस प्रकार मूल, संस्कृत व्याख्या, हिन्दी और गुजरातीअनुबाद - सहित यह 'औपपातिकसूत्र' मुद्रित हो कर आप शास्त्रप्रेमी महानुभावों के समक्ष प्रस्तुत है । आप इस के स्वाध्याय से अपने जीवन का चरम उत्कर्ष साधन कर इस दुर्लभ मानव जीवन को सफल करें, यही हमारी आन्त रिक भावना है । इति शम् ।
अहमदाबाद
-मुनि कन्हैयालाल
ता. २४-१०-५८.