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________________ विपाकश्रुते वद्वन्दनार्थी परिषद् नगरान्निर्गता, राजाऽपि च वन्दनार्थं निर्गतः । 'तए णं' ततः खलु 'से सुबाहुकुमारे' स सुबाहुकुमार: 'तं' तत् 'महया' महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन 'जहापढमं ' यथा प्रथमं यथा येन प्रकारेण भगवती सूत्रे श. ९ उ. ३३ जमालिनिर्गतः 'तहा' तथा - अयमपि 'निग्गओ' निर्गतः - नवमशतकगत जमालिवद् रथेन निर्गत इत्यर्थः । 'धम्मो कहिओ' धर्मः कथितः -- भगवता धर्मकथा कथिता 'परिसा पडिगया' परिषत् प्रतिगता = धर्म श्रुत्वा प्रतिनिवृत्ता 'रायावि पडिगओ' राजाऽपि प्रतिगतः = प्रतिनिवृत्तः । 'तए णं से सुबाहुकुमारे' ततः खलु स सुबाहुकुमारः 'समणस्स भगवओ महावीरस्स' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'अंतिए' अन्तिके= समीपे 'धम्मं धर्मे 'सोच्चा' श्रुत्वा 'णिसम्म' निशम्य = हृद्यवर्धा 'हदु०' हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः प्रीतिमनाः हर्षवशविसर्पहृदयः 'जहा मेहो' यथा मेघकुमारः ५० महल से निकला । 'तर णं से सुबाहुकुमारे तं महया जहा पढमं तहा णिग्गओ' सुवाहुकुमार भी भगवतीसूत्र में वर्णित जमालि की तरह प्रभु की वंदना एवं उनसे धर्मश्रवण करने की भावना से पहिले की तरह भगवान के समीप आये । 'धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, रायावि पडिगओ' प्रभुने समस्त परिषद एवं राजा को धर्म का उपदेश किया । उपदेश श्रवण कर परिषद एवं राजा सब के सब अपने२ स्थान पर बापिस गये । 'तर णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा पिसम्म हट्ट० जहा मेहो तही अम्मापियरो आपुच्छइ ' सुबाहुकुमारने श्रवण भगवान् महावीर के निकट धर्मश्रवण कर और उसे अच्छी तरह हृदय में निश्चित कर आनंद एवं हर्ष से प्रफुल्लित हो मेघकुमार की तरह घर आकर अपने श्रभय् ४२वा भाटे नीडज्या राज्न पशु पोताना मडेसथी नीडज्या 'तए णं से सुबाहुकुमारे तं महया जहा पढमं तहा निग्गओ' सुमाहुडुभार पशु भगवती सूत्रमां વર્ણન કરેલ જમાલી પ્રમાણે પ્રભુને વદના અને તેમના પાસેથી ધર્મેશ્રમણ કરવાની भावनाथी प्रथम प्रमाणे भगवाननी पासे आव्या 'धम्मो कहिओ परिसा पडिगया राया विपडिगओ' प्रमुखे समस्त परिषद ने शन्नने धर्मना उपदेश साध्यो. उपदेश सांलणीने परिषद मने शन्न सौ पोताना स्थानपर पाछा याव्या. 'तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठ० जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ ' सुमाहुडुमारे श्रमण भगवान महावीर या ધર્મ શ્રમણ કરી અને સારી રીતે હૃદયમાં નિશ્ચય કરી આન ંદ હર્ષોંથી પ્રપુલ્લિત થઈને શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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