SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 764
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमारवर्णनम् टीका । 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु ‘से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं' स भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं 'वंदइ णमंसह' वन्दते नमस्यति, वंदित्ता णमंसित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' वन्दित्वा नमस्यित्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति । 'तए णं' ततः खलु 'समणे भगवं महावीरं अण्णया कयाई' श्रमणो भगवान् महावीरः अन्यदा कदाचित् 'हत्थिसीसाओ णयराओ' हस्तिशीर्षानगरात् 'पुप्फकंडराओ उजाणाओ' पुष्पकरण्डादुद्यानात् 'कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओ' कृतवनमालमियस्य यक्षस्य यक्षायतनात् 'पडिनिक्खमइ' प्रतिनिष्क्रमति 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'बहिया' बहिः 'जणेवयविहारं' जनपदविहारं= देशविहारं 'विहरई' विहरति-विचरति । 'तए णं' ततः खलुः ‘से सुबाहु 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं' सुबाहुकुमार का वृत्तान्त सुनने के बाद 'से भगवं गोयमे' भगवान् गौतम ने 'समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसई' श्रमण भगवान महावीर की वन्दना की, नमस्कार किया । 'वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' वंदना एवं नमस्कार कर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। 'तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइं हथिसीसाओ णपराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओ पडिनिक्खमइ' किसी एक समय श्रवण भगवान् महावीरने हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरंडक उद्यान में रहे हुए कृतवनमालप्रिय यक्ष के यक्षायतन से विहार किया 'पडिनिक्वमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरई' 'तए णं से' त्यादि. 'तए णं' सुभाइभानुं वृत्तान्त सामान्य पछी, 'भगवं गोयमे' भगवान गौतम, 'समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसई' श्रभा भावान महावीरने ना-भ४२ ४ा, 'वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' १४-नम४२ ४शने ते संयम भने तपथी मात्भाने लावित ४२ता य४ वियरवा वाय! 'तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइं हस्थिसीसाओ णयराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओ पडिनिक्खमई' में समय अभए लगवान महावीरे स्तिशा नाना पु०५કરંડક નામના બગીચામાં રહેલા કૃતવનમાલપ્રિય યક્ષના યક્ષાયતન (નિવાસસ્થાન) થી શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy