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________________ २६ विपाकश्रुते सीए' प्रथमायां पौरुष्यां 'सज्ज्ञायं करेइ' स्वाध्यायं करोति, 'जहा गोयमसामी' यथा गौतमस्वामी गौतमस्वामी यथा भिक्षाटनसमाचारों प्रयुल्ने, 'तहेव' तथैवायमपि ताइक्सामाचारी समाचरन् 'धम्मघोसे थेरे' धर्मघोषान् स्थविरान् 'आपुच्छइ' आपृच्छति-भिक्षार्थमाज्ञां गृह्णाति 'जाव' यावत्-हस्तिनापुरे नगरे उच्चनीचमध्यमक्लेषु 'अडमाणे अटन्=भिक्षार्थ भ्रमन् 'सुमुहस्स गाहावइस्स गिर्ह' सुमुखस्य गाथापतेर्गृहम् 'अणुप्पविढे' अनुपविष्टः गतः । 'तए णं से सुमुहे गाहावई' ततः खलु स सुमुखो गाथापतिः 'मुदत्तं अणगारं' सुदत्तमनगारम् ‘एज्जमाणं' एजमानम्-स्वगृहमागच्छन्तं 'पास' पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'हतु०' अनेन 'हट्टतुट्टचित्तमाणंदिए पीइमणे परमसेामणस्सिए हरिसबसविप्पमाणहियए' इति संङ्ग्रहः । तत्र 'हतुडचित्तमाणंदिए' हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः-हृष्टतुष्टम् अतितुष्टं, यद्वा-दृष्टं हर्षितं तुष्टं प्राप्तसन्तोषं, तादृशं 'मासक्खमणस्स पारणगंसि' मासक्षपणपारणा के दिन 'पढमाए पोरिसीए' प्रथम पौरुषी में 'सज्झायं करेइ' स्वाध्याय किये 'जहा गोयमसामो' गौतमस्वामीकी तरह भिक्षा के समय में 'धम्मघोसे थेरे आपुच्छइ' धर्मघोष आचार्यसे भिक्षा लाने के लिये आज्ञा मांगें और 'जाव अडमाणे सुमुहस्म गाहावइस्स गिहं अणुप्पचिसइ' हस्तिनापुर नगर में उच्चनीच एवं मध्यमकुलों में भिक्षा के लिये घूमते हुए सुमुख गाथापति के घर पर पहुँचे । 'तए णं' और ' से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एजमाणं पासई' ज्यों ही उस सुमुख गाथापतिने सुदत्त अनगार को अपने घर पर आया हुआ देखा त्यों ही 'पासित्ता' देखकर 'हतु१० आसणाओ अब्भुटेइ' वह बहुत ही हर्षित हुआ, सुदत्त अनगार को मणस्स पारणगंसि' भास मम पा२णाना हिवसे 'पढमाए पोरिसीए ' प्रथम पौरसीमा ‘सज्ज्ञायं करेइ ' स्वाध्याय यो 'जहा गोयमसामी' गौतम स्वामीना प्रमाणे भिक्षाना समये 'धम्मघोसे थेरे आपुच्छइ' धाप मायाय न मिक्षा सापा भाटे पूछयु भने 'जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पवितु' હસ્તિનાપુર નગરમાં ઉચ્ચ-નીચ એવં મધ્યમ કુલેમાં ભિક્ષા લેવા માટે ફરતા ફરતા सुभुप आयातिने धे२ पडांग्या 'तए णं ते पछी 'से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जामाणं पासइ' या ते सुभुम गाथापति सुहत्त माणुारने पाताना घर पासे सावता या ते मते 'पासित्ता' ने 'हतु४० आसणाओ अन्मुटेइ' ते घणे & पाभ्यो, सुत्त भुनिननन भनमा ध प था तृति શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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