SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 716
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९८ विपाकश्रुते 'तए णं' ततः खलु 'तीसे अंजूए देबीए' तस्या अज्वा देव्याः 'अण्णया कयाई' अन्यदा कदाचित् 'जोणीसूले पाउन्भूए यावि होत्था' योनिशूलं प्रादुर्भूतंचाप्यभवत् । 'तए णं' ततः खलु से विजए गया' स विजयमित्रो राजा ' कोडंबियपुरिसे' कौटुम्बिकपुरुषान् ‘सहावेइ ' शब्दयति, 'सदावित्ता' शब्दयित्वा 'एवं वयासी' एवमवादीत्-'गच्छह णं देवाणुप्पिया' गच्छत खलु हे देवानुप्रियाः ! 'वद्धमाणपुरे णयरे' वर्धमानपुरे नगरे 'सिंघाडग जाव' शुङ्गाटक यावत्-शृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु सर्वेषु राजमार्गेष्वित्यर्थः, 'एवं वयह एवं वदंत-एवं खलु देवाणुप्पिया एवं खलु हे देवानुप्रियाः ! 'विजयस्स रनो' विजयमित्रस्य राज्ञः 'अंजूए देवीए' अज्वा देव्याः 'जोणीमुले पाउब्भूए' योनिशूलं प्रादुर्भूतम् ‘जो णं' यः खलु 'इच्छइ' इच्छति 'विज्जोवा६' वैद्यो वा 'जाव' यावत्-अत्र यावच्छब्देन-'विज्जपुत्तो वा, जाणओ वा, जाणयपुना णं तीसे अंजूए देवीए अण्णया कयाइं जोणीमूले पाउब्भूए यावि होत्था' किसी एक समय अंजू देवी को योनिशूल उत्पन्न हुआ । 'तए णं से विजये राया कोडुंबियपुरिसे सदावेइ ' विजय राजाने यह बात जानकर परिचारकों को बुलाया । 'सदावित्ता एवं वयासी' बुला कर एसा कहा कि 'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया वद्धमाणणयरे' हे देवानुप्रिय ! तुम यहां से शीघ्र जाओ और, वर्द्धमाननगर में 'सिंघाडग जाव एवं वयह ' शृङ्गाटक आदि राजमागों के ऊपर खडे होकर इस प्रकार की घोषणा करो कि ' एवं खलु देवाणुप्पिया विजयस्स रणो अंजूए देवीए जोणीमूले पाउब्भूए जो णं इच्छइ विज्जो वा६ जाव उग्घोसंति' हे देवानुप्रिय नगर निवासियों ! सुनो-विजय राजा की रानी अंजू देवी को योनिशूल उप्तन्न हुआ है । जो कोई वैद्य, वैद्य का पुत्र, ज्ञायक, ज्ञायक का पुत्र संधी मलागाने मागच्या. 'तए णं तींसे अंजए देवीए अण्णया कयाई जोणीमूले पाउन्भूए यावि होत्था' से समय मनु वान योनिशुस । उत्पन्न थयो. 'तए णं से विजये राया कोडंबियपुरिसे सहावेइ' न्यारे विशय रातो मा पात समी त्यारे परियारलीन मासाव्या 'सदावित्ता एवं बयासी' नातावाने मा प्रमाणे प्रत्यु 'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया वद्धमाणणयरे' है हेवानुप्रिय ! तमे मडिया ही पद्धभान नसभा मे अने, 'सिंघाडग जाव एवं वयह' शाट २मा भाग ५२ SAL Rहीने, मा प्रा२नी रात ४२॥3 'एवं खलु देवाणुप्पिया विजयस्स रण्णो अंजूए देवीए जोणीसूले पाउन्भूए जो णं इच्छइ विज्जो वा६ जाव उग्घोसंति' वानुप्रिय! नगरमा २नाराय। સાંભળે ! વિજય રાજાના રાણી અંજુદેવીને નિશુલ રોગ ઉત્પન્ન થયેલ છે. જે કોઈ શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy