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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. ९, देवदत्तावर्णनम् केनापि कुमारेण-कुमृत्युना अपमृत्युना 'मारिस्सेंति' मारयिष्यन्ति' 'त्तिक?' इति कृत्वा इति विचार्य 'भीया४' भीता त्रस्ता त्रसिता उद्विग्ना सती 'जेणेव कोवघरे' यत्रैच कोपगृहं 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैवोपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता' उपागत्य 'ओहय जाव' अपहत यावद्-अपहतमनःसंकल्पा 'झियाइ' ध्यायति= आर्तध्यानं करोति ॥ सू० ४ ॥ ॥ मूलम् ॥ ____तए णं से सीहसेणे राया इमोसे कहाए लट्टे समाणे जेणेव कोवघरे जेणेव सामा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, सामं देवि ओहयजाव पासइ, पासित्ता एवं वयासीकिं णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहय जावग्झियासि ? तए णं सा सामा देवी सीहसेणेणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी-उप्फेणउप्फेणियं सीहसेणं राय एवं वयासी-एवं खलु सामी! ममं एगूणपंचसवत्तीसयाणं एगणपंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लद्धट्राई समाणाइं अण्णमण्णं सदावेंति सदावित्ता एवं वयासी एवं खलु सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए ४ अम्हं धूयाओ णो आढाइ णो परिजाणाइ जाव अंतराणि य छिदाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणीओ विहरंति, तं ण णजइ णं ममं केणइ कुमारेणं मारिस्सेंति तिकटु भीया ४ जावज्झियामि ॥ सू०५॥ नहीं है आदि२ । 'तं ण णज्जइ णं ममं केणइ कुमारेणं मारिस्मैति' सो न मालुम ये सब मुझे किस समय किस कुमार-कुमौत से मार डाल। "तिकट्ठ' ऐसा मन ही मन विचार कर 'भीया४' भयभीत, त्रसित और उद्विग्न चित्त होकर 'जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ' जहां कोप घर था वहां गई। और 'उवागच्छित्ता' जा कर 'ओहय जावज्झियाइ' विमनस्क हो आतंध्यान करने लगी ॥ सू० ४ ॥ णं ममं केणइ कुमारणं मारिसेंति' या प्रमाणे छ तो भने शु ५०५२ 3 से तमाम भणी भारी नाश ४३. अने भात भरावे 'त्तिकट्ट' प्रमाणे मनमा पियार उशने 'भीया४' भयभीत, त्रसित भने देशमय वित्त मनीने 'जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ' या ५ ५२ हेतु त्यां मने 'उवागच्छित्ता' ४४ने 'ओहय जावज्झियाइ' देशभय थर्धन मातध्यान ४२१। सी. (सू० ४) શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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