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________________ विपाकश्रुते विवक्षया निर्देशः । कीदृशी सा नगरी?- त्यत आह-'वण्णओ' वर्णकःअस्या वर्णनम्, स च-'रिद्वत्थिमियसमिद्धा, पमुइयजणजाणवया' इत्यादिरोपपातिकसूत्राद् विज्ञेय इत्यर्थः । तत्र ऋद्वस्तिमितसमृद्धा-ऋद्वानभःस्प शिबहुलप्रासादयुक्ता बहुलजनसंकुला च, स्तिमिता-स्वपरचक्रभयरहिता, समृद्धा धनधान्यादिपूर्णा, पदत्रयस्य कर्मधारयः, विभवविस्तीर्णा शान्तिसम्पन्ना चेत्यर्थः, प्रमुदितजनजानपदा - प्रमुदिताः प्रमोद प्राप्ताः, जना=नागरिकाः, जानपदाः अशेषदेशवासिनो यस्यां सा तथा, इष्टप्रभूतवस्तुसौलभ्यात् प्रमुदितनिखिलजनेत्यर्थः । 'तस्थ णं' तत्र खलु 'चंपाए णयरीए बहिया' चम्पाया नगर्या बहिः तस्या बाह्यप्रेदेशे — उत्तरपुरथिमे दिसीभाए' उत्तरपौरस्त्ये जैसी नहीं है। 'वण्णओ' इसका सविस्तर वर्णन औपपातिक सूत्र में 'ऋद्धस्थिमियसमिदा पमुइयजणजाणवया' इत्यादि है। 'ऋद्धा' उसमें ऊंचे ऊंचे महल थे, और वह जनसंख्या से भरी हुई थी। 'स्तिमिता' वहां स्वचक्त परचक्र- का भय नहीं था। 'समृद्धा' वह धन, धान्य और विभव से परिपूर्ण थी। ‘पमुइयजगजाणवया' वहां का प्रत्येक जन आनंद में सदा मग्न रहता था, दूसरे देशों से आये हुए मनुष्य वहां पर किसी भी वस्तु की अप्राप्तिजन्य कष्ट का अनुभव नहीं करते थे। वे भी सदा प्रफुल्लितचित्त रहते थे, कारण कि वहां पर जीवननिर्वाह की समस्त साधन-सामग्री बहुत ही प्रचुररूप में सुलभ थी। उस नगरी में ऐसा कोई भी स्थान नहीं था जो जनसमुदाय से व्यास न रहता हो। (तत्थ णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे (वण्णओ) तेनु सविस्तर वर्णन भोपाति सूत्रमा ऋदथिमियसमिद्धा पमुख्यजणजाणवया त्या छ. (ऋद्धा)तेमा या या महेस ता, मने ते नगरी भासोथी १२५२ ती. (स्तिमिता) स्वय-५२५ ने। त्यो भय न उता. (समृद्धा) धन, धान्य भने वैभवथी ते परिपूर्ण ती. (पमुइयजणजाणवया) त्यांना ६२४ माणसे આનંદમાં મગ્ન રહેતા હતા, બીજા દેશમાંથી આવેલા માણસે આ નગરીમાં કોઈ વસ્તુ વિના દુખ પામતા નહિ, અને તે પણ હમેશાં પ્રકુલ્લિત મનથી રહેતા હતા, કારણ કે અહીં જીવન-નિર્વાહની તમામ સાધન-સામગ્રી વિશેષ પ્રમાણમાં બહુજ સુલભ હતી. આ નગરીમાં એવું કઈ પણ સ્થાન ન હતું કે જ્યાં માણસની वस्ती न होय. (तत्य णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे चेइए શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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