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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ४, शकटवर्णनम् ४३५ एवं खलु सामी ! सगडे दारए मम अंतेउरंसि अवरद्धे । तए णं से महच्चंदे राया सुसेणं अमचं एवं वयासी - तुमं चेव णं देवाप्पिया सगडस्स दारगस्स दंडं णिवत्ते हि । तए णं से सुसेणे अमच्चे महच्चंदेणं रण्णा अब्भणुपणाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ । तं एवं खलु गोयमा ! सगडे दारए तं पुरापोराणाणं दुचिण्णाणं जाव विहरइ ॥ सू ११ ॥ टीका 'इमं च णं' इत्यादि । 'इमं च णं सुसेणे अमच्चे पहाए जाव' इतश्व खलु सुषेणेोऽमात्यः स्नातः यावत् 'सव्वालंकारविभूसिए' सर्वालंकारविभूषितः, 'मणुस्वरगुराए' मनुष्यवागुरया = मनुष्यसमूहेन 'परिक्खित्ते' परिक्षिप्तः = वेष्टितः, 'जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छर' यत्रैव सुदर्शनाया गणिकाया गृहं तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता सगडं दारयं सुदरिसणाए सद्धि' 'इमं च णं०' इत्यादि । 'सुसेणे अमच्चे' एक समय की बात हैं कि जब सुषेण अमात्य सुदर्शना वेश्या के घर जाने के लिये इच्छुक हुआ, तब उसने सर्व प्रथम 'पहाए जाव सव्वालंकारविभूसिए' स्नान आदि क्रियाएँ कीं और उनसे निपट कर योग्य समस्त अलंकारों से अपना शरीर सुसज्जित किया । 'मस्स वग्गुराए परिक्खित्ते' सर्व प्रकार से सुसज्जित होकर यह मनुष्यों से परिवेष्टित होकर 'जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गिहे ' जहां उस सुदर्शना वेश्या का घर था 'तेणेव उवागच्छइ' वहाँ पहुँचा 'उवागच्छित्ता' पहुँचते ही उसने 'सगडं दारयं सुदरिसणाए सद्धिं उरालाई 6 इमं च णं० छत्याहि. " , सुसेणे अमच्चे' : सभयनी बात छे है न्यारे सुषेषु मंत्री सुदर्शना वेश्याना घेर ४वा भाटेनी ४२च्छा उरी; त्यारे तेथे सौथी प्रथम 'पहाए जात्र सव्वालं कारविभू सिए ' स्नान आदि डियागो पुरी भने ते अभथी निवृत्त थाने योग्य अारना तमाम अल अरोथी पोताना शरीरने शत्रुगायु - सन्ति यु 'मणुस्सवग्गुराए परिक्खित्ते ' सर्व प्रारथी सन्भित थया यछी ते मनुष्योनी साथै भसीने 'जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गिहे ' न्यां ते सुदर्शना वेश्यानु घर हेतु' 'तेणेव उवागच्छइ' त्यां यहांच्या ' उवागच्छित्ता' यहन्यता ४ तेथे 'सगडं दारयं सुद શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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